कौशल शिक्षा से ही आत्मनिर्भर भारत की संकल्पना संभव - प्रो नरेश चंद्र गौतम कुलपति




कौशल शिक्षा से ही आत्मनिर्भर भारत की संकल्पना संभव - प्रो नरेश चंद्र गौतम कुलपति

 चित्रकूट, 05 जून 2020। महात्मा गांधी चित्रकूट ग्रामोदय विश्वविद्यालय के कुलपति  प्रो नरेश चंद गौतम ने  उच्च शिक्षण संस्थानों में कौशल शिक्षा की महत्ता पर बल देते हुए कहा  कि प्रधानमंत्री  श्री नरेंद्र मोदी जी के आत्मनिर्भर भारत अभियान को मूर्त रूप कौशल शिक्षा से ही  दिया जा सकता है । उन्होंने कहा  कि ग्रामोदय विश्वविद्यालय में  स्थापना काल से ही विभिन्न स्तरों पर कौशल शिक्षण व प्रशिक्षण के कार्यक्रम चलाए जाते आ रहे हैं  जिससे क्षेत्र की जनता को  काफी लाभ  मिल रहा है। इस आशय के विचार गुरुवार को महात्मा गांधी चित्रकूट ग्रामोदय विश्वविद्यालय में आयोजित "आत्मनिर्भर भारत के लिए  कौशल शिक्षा का स्वरूप विषय "पर  एक दिवसीय ई कार्यशाला के उद्घाटन अवसर पर व्यक्त किया। प्रो गौतम ने प्रतिभागियों का आह्वान किया कि वे कौशल शिक्षा के विभिन्न आयामों पर इस कार्यशाला में गहन चिंतन व मनन करे  तथा व्यक्त किये गए विचारों का अधिकतम लाभलोगों तक पहुंचे, ऐसी कार्ययोजना भी तैयार करें।
इस ऑनलाइन कार्यशाला का आयोजन दीन दयाल उपाध्याय कौशल केंद्र ,अभियांत्रिकी एवं प्रौद्योगिकी संकाय  के तत्वावधान में किया गया था।  इस अवसर पर  अभियांत्रिकी और प्रौद्योगिकी संकाय के अधिष्ठाता डॉ आंजनेय पांडे ने प्रतिभागियों का और विशिष्ट अतिथियों का स्वागत किया तथा आशा व्यक्त की कि भारत की एक समृद्ध व गौरवशाली परंपरा को नए रूप में आगे बढ़ाने का श्रेय कौशल शिक्षण व प्रशिक्षण को प्राप्त होगा। कार्यशाला में विशिष्ट आमंत्रित अतिथियों के रूप में रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय जबलपुर के कुलपति प्रो कपिलदेव मिश्र, राजस्थान कौशल विश्वविद्यालय के कुलपति डॉक्टर ललित पवार, विश्वकर्मा कौशल विश्वविद्यालय गुड़गांव के कुलपति डॉ राज नेहरु,  भारतीय कृषि कौशल परिषद  के मुख्य कार्यकारी अधिकारी डॉ सतेंद्र आर्य, महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण औद्योगीकरण संस्थान के निदेशक डॉ आर के गुप्ता, रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय के कौशल केंद्र के  निदेशक डॉ सुरेंद्र सिंह उपस्थित रहे ।
कार्यशाला के मुख्य संयोजक कौशल केंद्र के प्राचार्य इं राजेश सिन्हा ने विषय प्रवेश करते हुए बताया कि कौशल शिक्षा आज की मांग है तथा इस विश्वविद्यालय में प्रमाण पत्र पाठ्यक्रमों से लेकर बी वोक, एम.वोक व पी एच डी तक की व्यवस्था है। यू जी सी के निर्देशों के आधार पर सभी पाठ्यक्रमों में बहु प्रवेश व बहु निकास की व्यवस्था तथा 60 प्रतिशत कौशल आधारित एवं 40 प्रतिशत सामान्य विषयों पर आधारित विषयों को रखा जाता है। इनमें से कई विषय छात्र स्वयं के चुनाव के आधार पर रख सकते हैं। इं सिन्हा ने बताया कि इस कार्यशाला का आयोजन आत्मनिर्भर भारत के  उद्येश्यों के अनुरूप पाठ्यक्रमों  में रचनात्मक बदलाव हेतु सुझाव देने के लिए किया गया है जिससे छात्रों के सामने अवसर एवं चयन के विकल्प रहें कि अध्ययन के उपरांत  उन्हें क्या करना है।उद्घाटन सत्र में विशिष्ट अतिथि के रूप में बोलते हुए रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय जबलपुर के कुलपति प्रो कपिलदेव मिश्र ने कहा कि भारत हमेशा से कौशल प्रधान देश रहा है, इसलिए यहां पर इस दिशा में कार्य करने में कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए। हमारे शिक्षक राष्ट्र का निर्माण करना जानते हैं। विगत में भी कौटिल्य ने एक युवा चंद्रगुप्त में कौशल शिक्षण के माध्यम से ही एक बड़ा साम्राज्य स्थापित करने में सफलता प्राप्त की। प्रो मिश्र ने कहा कि आज के युवा टेक्नोलॉजी का काफी प्रयोग कर रहे हैं तथा इसी अनुरूप व्यवस्थाएं भी बदल रही हैं। आज हम देख रहे हैं कि शिक्षा, परीक्षा, और अनुसंधान सभी की पद्धति बदल गई है व सभी में टेक्नोलॉजी का समावेश हो गया है । टेक्नोलॉजी के उचित प्रयोग से किस प्रकार से आत्मनिर्भरता आ सकती है इस विषय में भी सोचा जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि  महात्मा गांधी ने सन 1909 में ही हिंद स्वराज पुस्तिका में इस विषय पर विस्तार से चर्चा की है कि देश की प्रगति के लिए ग्रामोद्योग की कितनी महती आवश्यकता है।विशिष्ट अतिथि के रूप में एग्रीकल्चर स्किल काउंसिल ऑफ इंडिया ए एस सी आई के मुख्य कार्यकारी अधिकारी डॉक्टर सत्येंद्र आर्य ने अपने उद्बोधन में बताया कि जब भी विकसित देशों से भारत की तुलना करते हैं तो पाते हैं कि यहां पर औपचारिक रूप से कौशल शिक्षा प्राप्त लोगों की संख्या बहुत कम है ।जर्मनी में 76% व दक्षिण कोरिया में 96% के सापेक्ष भारत में सिर्फ 4.2% जनता ने किसी संस्थान से कौशल शिक्षा प्राप्त की है। इससे यह पता चलता है कि औपचारिक कौशल शिक्षा के क्षेत्र में भारत विश्व से कितना पीछे है। उन्होंने कहा कि भारत हमेशा से एक औद्योगिक प्रधान देश रहा है पर समय के साथ इसमे कमी आयी है और आज हालत यह है कि कई परिवारों में पारिवारिक धंधे बंद हो चुके हैं जिसके कारण युवाओं को अपने पारिवारिक हुनर के बारे में पता ही नहीं । समय के साथ-साथ हुए तकनीकी विकास के साथ हमारे परंपरागत उद्योग धंधे अपना तालमेल नहीं बैठा पाए जिसके कारण उनकी गुणवत्ता एवं कार्य क्षमता में अपेक्षित परिवर्तन नहीं आ पाया।  डॉ आर्या ने इस बात पर बल दिया कि इस बात की बहुत जरूरत है कि न सिर्फ नए आयामों में बल्कि परंपरागत आयामों में भी कौशल विकास को बढ़ावा दिया जाए तथा लोगों का प्रशिक्षण किया जाए ।उदाहरण स्वरूप कृषि के क्षेत्र में केला उत्पादन या बागवानी उत्पादन परंपरागत रूप से चल रहा है लेकिन यदि उसके वैज्ञानिक पक्षों पर ध्यान दिया जाए तथा लोगों को उत्पादन, भंडारण, प्रसंस्करण तथा पैकेजिंग की नई नई तकनीकों के बारे में बताया जा सके तो इन क्षेत्रों में विकास की प्रचुर संभावना है तथा इस प्रकार के कौशल को पाठ्यक्रमों में शामिल करने की आवश्यकता है। उन्होंने बताया कि अध्ययन के बाद छात्र अपना रोजगार खुद शुरू कर सकें ,उसके लिए आवश्यक पूंजी की व्यवस्था हेतु शीघ्र ही नाबार्ड की विशेष योजना शुरू होने वाली है तथा निकट भविष्य में स्किल मैनेजमेंट इनफार्मेशन सिस्टम का उद्घाटन किया जाने वाला है ।
प्रथम तकनीकी सत्र में रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय के कौशल केंद्र के निदेशक डॉ सुरेंद्र सिंह ने विस्तार से कौशल शिक्षण के विभिन्न आयामों को सामने रखा तथा अपने विश्वविद्यालय में चलाए जा रहे पाठ्यक्रमों के बारे में भी बताया ।उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि विवि के बी वोक व एम वोक  पाठ्यक्रमों को लोकप्रिय बनाने की जरूरत है। साथ ही विश्वविद्यालय के परंपरागत पाठ्यक्रमों में पढ़ रहे छात्रों को भी कौशल प्रशिक्षण से जोड़ना चाहिए जिससे कि हर छात्र आत्मनिर्भर हो सकें। कौशल पाठ्यक्रमों के समान परंपरागत पाठ्यक्रमों में भी मल्टी एंट्री और मल्टी एग्जिट प्रावधानों तथा उम्र की सीमा हटाने की भी जरूरत है। साथ ही विदेशों के तर्ज पर शोध आधारित डिग्री प्रदान की जा सकती है। प्रो सिंह ने कहा कि विश्वविद्यालयों को अपने आर्थिक स्वावलंबन के बारे में भी सोचना चाहिए। जितने प्रकार की तकनीक मौजूद है उसका व्यापारीकरण किया जाना चाहिए तथा  इस दिशा में शिक्षकों को विचार करना चाहिए और इसमें लचीलापन भी होना चाहिए। बच्चों को कौशल विकास के कार्यक्रमों के लिए कुछ क्रेडिट देना पड़ेगा और उसके लिए उच्च शिक्षण संस्थान तंत्र में कुछ परिवर्तन भी लाना पड़ेगा। द्वितीय तकनीकी सत्र के विशिष्ट अतिथि महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण औद्योगिकीकरण संस्थान के निदेशक डॉ आर के गुप्ता ने अपने संस्थान के स्वावलंबन आधारित कार्यक्रमों की जानकारी दी। उन्होंने इस बात पर बल दिया कि उनके संस्थान से ग्रामोदय विश्वविद्यालय जैसे संस्थानों का एम ओ यू होना चाहिए जिससे कि छात्रों का प्रमाणन किया जा सके। डॉ गुप्ता ने कहा कि कौशल शिक्षण संस्थानो में छात्रों के लिए इन्क्यूबेशन केंद्रों की स्थापना की जानी चाहिए जहां पर छात्र अध्ययन करने के साथ-साथ आय अर्जन भी कर सकें। छात्र उद्यमिता को बढावा देने की दिशा में परियोजनागत मदद भी ली जा सकती है। अंतिम सत्र में विशिष्ट अतिथि विश्वकर्मा कौशल विश्वविद्यालय गुड़गांव हरियाणा के कुलपति डॉ राज नेहरु ने अपने विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रमों के बारे में बताया तथा छात्रों के प्रश्नों का विस्तार से उत्तर दिया। एक प्रश्न के उत्तर में उन्होंने बताया कि कौशल विकास में सिर्फ तकनीकी शिक्षा ही पर्याप्त नहीं है इसके साथ-साथ मानसिक, भावनात्मक  एवं अन्य कौशल की काफी आवश्यकता है। प्राचीन काल मे भारतीय शिक्षण पद्धति में श्रवण, मनन एवं निदिध्यासन तीनो का समावेश होता था, तभी अध्ययन के बाद छात्र किसी भी स्थिति में अपने को ढालने की क्षमता रखते थे। तकनीकी कौशल प्राप्त कर लेने से छात्रों को शुरुआती मदद मिल सकती है लेकिन संवाद कौशल, निर्णय लेने का कौशल, संगठन कौशल, सुनने का कौशल, सभी प्रकार के कौशल होना जरूरी है नही तो काफी आगे जा पाना मुश्किल होगा। प्रो नेहरू ने  कहा कि आजकल नौकरी देने वाले संस्थान प्रायः  साइकोमेट्रिक विष्लेषण तथा मेन्टल मैपिंग का सहारा लेते हैं, इसलिए छात्रों को अपना मानसिक कौशल बढ़ाना जरूरी है। कौशल विकास के अंतर्गत सॉफ्ट स्किल व हार्ड स्किल दोनो आते हैं। एक दूसरे प्रश्न के उत्तर में  उन्होंने कहा कि किसी भी कौशल शिक्षण को टिकाऊ तभी बनाया जा सकता है जब छात्र अपने सीखे गए हुनर में समय के साथ साथ उचित बदलाव करें एवं कार्य के दौरान आयी परिस्थितियों के अनुसार तालमेल बिठा सके।
इस सत्र में इसी विवि से बी वोक उत्तीर्ण छात्र विक्रम सिंह परिहार ने यह सुझाव दिया विश्वविद्यालय समय-समय पर अपने पुराने छात्रों को बुलाए जिससे हुए नए छात्रों का मार्गदर्शन कर सकें तथा उद्योगों में किस प्रकार के पाठ्यक्रमों की आवश्यकता है उस हिसाब से विषयों में बदलाव किया जाए इस हेतु अलग-अलग उद्योगों से मैं कार्यरत पूरा छात्र उन उद्योगों का विश्वविद्यालय से समझौता ज्ञापन कराने में मदद कर सकते हैं सत्र में वर्तमान में अध्ययनरत छात्र कमल किशोर पांडे हरिनारायण मिश्रा वैभव श्रीवास्तव, आराध्या यादव आराध्या यादव चंचल मिश्रा अनुज निषाद आदि ने अपने प्रश्न रखे जिनका उत्तर  प्रो नेहरू ने दिया।
कार्यशाला के विभिन्न सत्रों में ग्रामोदय विश्वविद्यालय के इं सी पी बस्तानी, डॉक्टर देवेंद्र पांडे, डॉ स्वर्णलता शर्मा, पुडुचेरी के डॉ प्रदीप चास्वाल, कोडरमा के डॉक्टर चंद्रशेखर नाथ झा, लखनऊ की डॉ सुचिता पांडे,  फैजाबाद के डॉक्टर दीपक चास्वाल ने अपने शोध पत्र पढ़े।
विवि के प्रो रमेश चंद्र त्रिपाठी, प्रो योगेश कुमार सिंह, प्रो डी पी राय, प्रो हरि सिंह कुशवाहा, डॉ कुसुम सिंह, डॉ जय शंकर मिश्र, डॉ अजय चौरे, डॉ अभय वर्मा,प्रो नंदलाल मिश्रा, डॉ सूर्य प्रकाश शुक्ल आदि की सहभागिता रही। सम्पूर्ण कार्यशाला के आयोजन सचिब इं राजेश सिन्हा तथा सह सचिव इं अश्वनी दुग्गल रहे ।तकनीकी प्रबंधन डॉ गोविंद सिंह, इं नीरज कुमार तथा इं विवेक कुमार सिंह ने किया। आभार प्रदर्शन सह सचिव व खाद्य प्रौद्योगिकी विभाग के विभागाध्यक्ष इं अश्वनी दुग्गल ने किया।यह जानकारी जन सम्पर्क अधिकारी जय प्रकाश शुक्ल ने दी है।


Shubham Rai Tripathi
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