कोविड -19 के संक्रमण से उत्पन्न स्थिति पर शोधकार्य हो- जयंतराव सहस्त्रबुद्धे





  कोविड -19 के संक्रमण से उत्पन्न स्थिति पर शोधकार्य हो-    जयंतराव सहस्त्रबुद्धे

अनेक प्रान्तों के वैज्ञानिकों ने वेबिनार में अपने विचार रखें।


 चित्रकूट,02 जून 2020 । विज्ञान भारती के राष्ट्रीय संगठन मंत्री  जयंत राव सहस्त्रबुद्धे ने आज महात्मा गांधी चित्रकूट ग्रामोदय विश्वविद्यालय में आयोजित एक दिवसीय  इमर्जिंग ट्रेंड्स आफ रिसर्च डाइमेंशंस फ़ॉर सेल्फ रिलाइन्ट इंडिया विषयक राष्ट्रीय वेबिनार का उद्घाटन किया।दीन दयाल शोध संस्थान के राष्ट्रीय संगठन मंत्री अभय महाजन रहे।अध्यक्षता ग्रामोदय विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो नरेश चंद्र गौतम ने की।इस अवसर पर मुख्य अतिथि और विज्ञान भारती के राष्ट्रीय मंत्री जयंत राव सहस्त्रबुद्धे ने कहा कि नोबल कोरोना  वायरस के कारण उत्पन्न स्थिति का सामना कर रहे विश्व के अनेक देशों की स्थिति अलग-अलग है। दूसरे देशों की तुलना में हमारे देश की स्थिति संतोषजनक है। यह रोग एक संक्रामक रोग है, जो पूरे विश्व में फैला है,। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इसे वैश्विक महामारी घोषित किया है। पिछले 45 वर्षों में कई जूनोटिक डिसीसिस, जो  पशुओं के द्वारा मानव में फैलती हैं, के संबंधित ईबोला, स्वाइन फ्लू आदि का उदाहरण देते हुए श्री सहस्त्रबुद्धे ने कोविड-19 के कारण उत्पन्न स्थिति पर शोध कार्य करने के लिए छात्रों का आवाहन किया। कोविड-19 की  संक्रामकता का असर  वैश्विक महामारी के तौर पर फैल चुका है।हमें भविष्य में इसके साथ ही जीना होगा। उन्होंने भारतीय स्वास्थ्य और चिकित्सा पर चर्चा करते हुए कहा कि जब कोई व्यक्ति बीमार होता है तो उसके उपचार के लिए औषधियों का प्रयोग किया जाता है, ऐसी व्यवस्था आधुनिक विज्ञान में निहित है, किंतु हमारे देश भारत में स्वास्थ्य के प्रति ऐसी व्यवस्था थी कि व्यक्ति बीमार ही ना हो और वह आजीवन स्वस्थ बना रहे। उन्होंने आधुनिक विज्ञान के जेनेटिक संरचना का वर्णन करते हुए कहा कि इसके अध्ययन से भविष्य में होने वाली बीमारी का अनुमान लगाया जा सकता है। ज्योतिष विज्ञान विधा के द्वारा हमारे ऋषि मुनि यह सब करते आ रहे थे। हमें रोगों का इलाज करने के बजाए  प्रेडिक्शन और प्रिवेंशन पर जोर देना है। इसके लिए आयुर्वेद पद्धति के द्वारा निरंतर व्यक्ति स्वस्थ कैसे बना रहे इसके अध्ययन की आवश्यकता है। ज्येष्ठ मास में ग्रीष्म ऋतु का उदाहरण देते हुए कहा कि कालगणना के अनुसार हमें अपने खानपान पर ध्यान देना चाहिए, जिससे शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बनी रहे। क्रोनोबायोलॉजी में नोबेल पुरस्कार से पुरस्कृत बायोलॉजिकल क्लॉक एवं बायोलॉजिकल सेरकेडीयन के उदाहरण से बताया कि मानव में उपवास का प्रचलन था, जिसका विदेशी सभ्यता ने उपहास किया। जबकि हमारे देश में इन बातों पर पहले से ही गहराई के साथ शोध कार्य संपन्न हो चुका है। आज विज्ञान को समाज में घर-घर तक पहुंचाना है, हमें अपने जीवन शैली को पर्यावरण के अनुरूप तैयार करना है।उन्होंने पोलर रीजन का उदाहरण देते हुए बताया कि वहां पर 6 माह का दिन रहता है तथा 6 महीने की रात्रि होती है। देश में स्मार्ट सिटी और स्मार्ट विलेज बनाने के लिए विदेशी शहरों और विदेशी गांव के माध्यम को अनुचित ठहराते हुए कहा कि हमारे गांव में कोविड-19 का फैलाव कम है ऐसा क्यों है, यह एक शोध का विषय है?  हमें अपने देश का स्वयं का अर्थ तंत्र विकसित करना होगा, जिससे कि हम अपने देश की बनी हुई वस्तुओं का प्रमाणीकरण कर सकें। अपने सुरक्षा तंत्र को विकसित करना होगा तथा मापन की पद्धति को भी विकसित करना होगा। उन्होंने आत्मनिर्भर भारत,  सुरक्षित भारत और समर्थ भारत के विषयों पर भी गहराई से प्रकाश डाला। दीनदयाल शोध संस्थान के राष्ट्रीय संगठन सचिव अभय महाजन  ने इस राष्ट्रीय वेबिनार में भारत की अर्थव्यवस्था का दृढ़ता के साथ उल्लेख किया और कहा कि अंग्रेजों के शासन काल में हमारी अर्थव्यवस्था को नष्ट कर दिया था। आजादी के समय हमारे देश की विश्व व्यापार में भूमिका बहुत अच्छी थी। हम तभी स्वावलंबी बनेंगे जब हम समर्थ होंगे,। समृद्धि समाज, शक्तिशाली समाज और सुरक्षित समाज की भी विस्तृत व्याख्या करते हुए कहा कि हमारा गांव देश की सबसे छोटी इकाई है यदि देश को समृद्ध बनाना है तो उससे पहले गांव को समृद्ध बनाना होगा। श्री महाजन ने शरीर, मन और बुद्धि के द्वारा शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने के उपाय बताए। आज निर्जला एकादशी है जो कि मन को नियंत्रण करने के लिए बहुत ही उपयोगी है।उन्होंने आयुर्वेद की पद्धति को अपने खानपान, जीवन शैली में अपनाने के लिए जोर दिया। श्री महाजन ने स्वर्गीय दीनदयाल उपाध्याय के एकात्म मानव दर्शन का वर्णन करते हुए बताया कि उपाध्याय जी का चिंतन पुरातन चिंतन का एक सामूहिक स्वरूप है। उन्होंने संस्थान के द्वारा  संचालित स्वावलंबन अभियान के माध्यम से गांव को स्वावलंबी बनाने के लिए कई प्रकल्पों  का उदाहरण देते हुए कहा कि गांव में छोटी-छोटी वस्तुओं के लिए विवाद होते हैं जबकि चित्रकूट एक ऐसा स्थान है जहां पर त्रेता युग में श्री राम और श्री भरत ने अयोध्या के सिंहासन को एक दूसरे को सहज प्रदान करने के लिए तत्पर थे। उन्होंने गांव में विकसित मंडलियों के क्रिया कलापो की चर्चा करते हुए बताया कि यह मंडलिया बहुत उपयोगी है जो कि सामाजिक व्यवस्था को बनाए रखने में सहयोग करती हैं।उन्होंने नाना जी के समाज शिल्पी दंपत्ति के कार्यों का वर्णन करते हुए सामाजिक पुनर्रचना में उनके सहयोग की सराहना की। 



मध्य प्रदेश काउंसिल आफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी भोपाल के महानिदेशक प्रोफेसर अनिल कोठारी ने कोरोना वायरस से उत्पन्न नई चुनौतियों के द्वारा नई चुनौतियों का सामना करने के लिए समर्थ और संपन्न भारत बनाने की बात की। उन्होंने ग्लोबल से लोकल तथा लोकल से ग्लोबल की अवधारणा को अपने परिषद के माध्यम से पूरे प्रदेश के सभी अंचलों में स्वरोजगार के साधनों को चिन्हित किया है तथा उनका उपयोग सामाजिक एवं आर्थिक विकास में विज्ञान और तकनीकी के माध्यम से कर रहे हैं। आपने स्मार्ट वेंटिलेटर- स्मार्ट हॉस्पिटल, लो कास्ट मास्क और  लो कास्ट सैनिटाइजर पर शोध करने के लिए बायो तकनीकी एवं अभियांत्रिकी के छात्रों का आवाहन किया।उन्होंने बताया कि पर्यावरण, स्वरोजगार, शिक्षा तथा ग्रामीण उद्यमिता आदि विषयों पर शोध की आवश्यकता है।
 प्रयाग विश्वविद्यालय के एमेरिटस प्रोफेसर एवं राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी के पूर्व महासचिव प्रोफेसर यूसी श्रीवास्तव ने भारत आत्मनिर्भर कैसे बने, इस बिंदु पर शिक्षा का क्या महत्व होगा, क्या भूमिका होगी ,इसका वर्णन करते हुए बताया कि प्राचीन समय में हमारे देश में अन्वेषणकर्ता, आत्मनिर्भरता एवं सेल्फ स्टार्टर भरा पड़ा था। उन्होंने आधुनिक विज्ञान में बायो तकनीकी, बायोइनफॉर्मेटिक्स, पर्यावरण तकनीकी जैसे विषयों पर शोध करने के लिए छात्रों का आह्वान किया तथा चिकित्सा शिक्षा की आवश्यकता पर प्रकाश डालते हुए कि बताया कि हमारे देश के बहुत सारे चिकित्सा वैज्ञानिक अध्ययन कार्य पूर्ण कर के विदेशों में अपनी सेवा दे रहे हैं। उन्हें अपने देश के स्वास्थ्य की व्यवस्था में सहयोग देना चाहिए। प्रो श्रीवास्तव ने न्यूरो सेक्रेटरी प्रोडक्ट डोपामिन का उदाहरण देते हुए बताया कि यह अच्छे स्वास्थ्य की निशानी है। हमें जंक फूड एवं बाहर का भोजन इस महामारी के समय त्याग देना चाहिए। हमारे देश में अभी भी चिकित्सा शिक्षा से जुड़े अधिकतर उपकरण विदेशों से आयातित किए जाते हैं उन्हें अपने देश में निर्माण करने की आवश्यकता है। कहा कि जब हम विज्ञान और तकनीकी में आत्मनिर्भर बनेंगे तभी हमारा देश आत्मनिर्भर हो पाएगा। आपने कोरोना वायरस के संक्रमण के द्वारा शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली का वर्णन किया। जिस व्यक्ति की प्रतिरक्षा प्रणाली मजबूत होगी उसमें कोरोना वायरस का खतरा कम होगा। उद्घाटन अवसर पर अध्यक्षीय उद्बोधन में विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो नरेश चंद्र गौतम  ने कहा कि हमें अपने आसपास की समस्याओं की पहचान करके उसके अनुसार कार्यप्रणाली का निर्धारण करना चाहिए। छात्रों को समाज हित के लिए एवं देश हित के लिए कार्य करना चाहिए।प्रो गौतम ने क्षेत्रीय संसाधनों का उपयोग करते हुए वहां की समस्याओं का समाधान कैसे हो, इस दिशा में शोध कार्य करने की आवश्यकता पर बल दिया।  प्रॉब्लम ओरिएंटेड एक्शन रिसर्च करने की आवश्यकता पर जोर देते हुए प्रो गौतम ने कहा  कि  इससे हमारी अर्थव्यवस्था समर्थ होगी और, हमारा देश आत्मनिर्भर बन सकेगा।
इस राष्ट्रीय वेबिनार के प्रथम तकनीकी सत्र में डॉ राजेश सक्सेना ने प्रवासी मजदूरों की समस्या को ध्यान में रखते हुए पेयजल व्यवस्था, ग्रामीण रोजगार, ग्रामीण स्वावलंबन आदि पर अपना प्रकाश डाला। आपने कैपेसिटी बिल्डिंग का उदाहरण देकर बताया कि परिषद में डीएनए सीक्वेन्सर जैसे कई महत्वपूर्ण उपकरण उपलब्ध है, इनका प्रयोग प्रदेश के समस्त शोध छात्र कर सकते हैं।  कहा कि  परियोजनाओं के संचालन के लिए हमें ग्रामीण स्तर पर क्षेत्रीय स्तर पर तथा प्रादेशिक स्तर पर सामूहिक रूप से कार्य करना होगा।  उन्होंने प्रवासी मजदूरों के कौशल क्षमता का पहचान कर ग्रामीण तकनीकी में उनका उपयोग करने की बात की। डॉ सक्सेना ने जैव विविधता के संरक्षण के लिए प्रदेश के सभी नदियों के दोनों तरफ 5 किलोमीटर के क्षेत्र में औषधीय पौधों के कल्टीवेशन की भी बात की।  प्रधानमंत्री  नरेंद्र मोदी  ने औषधीय पौधों के कल्टीवेशन के लिए 4000 करोड़ रुपए का आवंटन की घोषणा की है,इसका उपयोग कर ग्रामीण क्षेत्र में औषधि पौधों के कल्टीवेशन के साथ-साथ उनकी हारवेस्टिंग प्रोसेसिंग पैकेजिंग और मार्केटिंग की व्यवस्था को भी मजबूत करना होगा। मध्य प्रदेश काउंसिल आफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी किसानों को मशरूम की खेती को करने के लिए प्रेरित किया है तथा उन्हें उचित बाजार भी उपलब्ध कराया है। बताया कि किसानों का समूह बनाकर प्रशिक्षणार्थियों को बाजार से जोड़ना होगा, केवल प्रशिक्षण देकर उन्हें छोड़ना ठीक नहीं है। आपने टिश्यू कल्चर के माध्यम से औषधीय पौधों के संरक्षण पर भी प्रकाश डाला।
राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी के एग्जेक्युटिव सेक्रेटरी डॉ नीरज कुमार ने कोविड-19 महामारी के बारे में कहा यह बीमारी एक विश्व की विपदा के रूप में उभर कर आई है जो मानव समुदाय पर बुरा असर डाल रही है।  कोविड-19 के दूसरे पक्ष का वर्णन करते हुए बताया कि हमारे देश का पर्यावरण सुधर रहा है, नदियों का जल स्तर बेहतर और जल्द स्वच्छ हो गया है अर्थात मानव ही ऐसा एक जिम्मेदार प्राणी है जो कि प्रकृति को प्रदूषित करता है। मानव की एंथ्रोपोजेनिक एक्टिविटी ही हमारे प्राकृतिक संसाधनों को दूषित करती है। आपने विश्व के कई शोधों का उदाहरण देते हुए बताया कि यस ए आर एस 2 के विषाणु कोविड-19 के विषाणु 79% से अधिक मिलते हैं। आपने कहा की कोविड -19 वायरस में बहुत तेजी से उत्परिवर्तन हो रहा है अभी तक इसमें 10 उत्परिवर्तन हो चुके हैं जिसके कारण वैक्सीन बनाने की प्रक्रिया में अत्यंत कठिनाई हो रही है। बताया कि हमें प्रिवेंटिव और अल्टरनेटिव मेडिसिन नेचुरोपैथी जैसे स्वास्थ्य पद्धति का सहारा लेना होगा। हमारे देश में आयुष मंत्रालय भी प्रोटेक्टिव और प्रीवेंटिव केयर के लिए कार्य कर रहा है। कोरोना वायरस की संरचना को वर्णन करते हुए उन्होंने इसके स्पाइक की संरचना के बारे में जानकारी दी। बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर वासु प्रभु जिर्ली ने कृषि शिक्षा को केंद्रित करते हुए हमारे देश के उत्पादन और जनसंख्या के अनुपात का वर्णन किया और बताया कि दोनों की वृद्धि में एक जैसा अनुपात है। हरित क्रांति, आत्मा जैसे कृषि प्रसार कार्यक्रमों का वर्णन करते हुए उन्होंने फसल उत्पादन में महिलाओं की भूमिका की सराहना की।  महिलाओं के द्वारा सीड कलेक्शन, सीड रिजर्वेशन आदि के बारे में विस्तार से बताया। प्रोफेसर जिरली ने बताया कि हमारे शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को मृदा में प्रयोग किए जाने के लिए जिंक मजबूत बनाता है।  कहा कि हमारी प्रारंभिक कृषि बहुत ही वैज्ञानिक ढंग से चल रही थी। हमारी पारंपरिक कृषि को डॉक्यूमेंटेशन करने की आवश्यकता है।  उन्होंने अन्ना हजारे, राजेंद्र सिंह जैसे स्वयंसेवी व्यक्तियों का उदाहरण देते हुए वाटर शेड मैनेजमेंट को अपनाने के लिए जोर देते हुए दीनदयाल शोध संस्थान के कार्यों की सराहना  की एवं वर्तमान में ग्रुप अप्रोच, सामूहिक सहभागिता में सेल्फ हेल्प ग्रुप, कोऑपरेटिव सोसायटी, फार्मर फील्ड स्कूल जैसे संस्थाओं का विस्तार से वर्णन किया।  सॉइल हेल्थ कार्ड का वर्णन करते हुए नाइट्रोजन के प्रयोग की मात्रा पर प्रकाश डाला।  इमीडिएटएड कृषि प्रसार को सोशल मीडिया के माध्यम से किस प्रकार से एक्सपर्ट के द्वारा किसानों तक पहुंचाया जाए उसका विस्तार से वर्णन किया।
द्वितीय तकनीकी सत्र में वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय के बिजनेस इकोनॉमिक्स के प्रोफेसर मानस पांडे ने हु आर यू एंड वेयर आर यू गोइंग का सिद्धांत लेकर भविष्य की अर्थव्यवस्था को एलपीजी के माध्यम से समझाते हुए कहा कि हमें भविष्य के निर्माण के पूर्व वर्तमान की परिस्थितियों से अवगत होना होगा।  लोकलाइजेशन प्राइवेटाइजेशन और ग्लोबलाइजेशन का वर्णन करते हुए सस्टेनेबल ग्रोथ का विस्तार से वर्णन किया।  बताया कि अर्थव्यवस्था की इकाई ग्राम है किंतु ग्राम वासियों को निर्णय लेने की शक्ति पूर्ण रूप से प्रदान नहीं की गई है जिसके कारण इकोनामिक रिफॉर्म्स नहीं हो पा रहे हैं।  प्रवासी मजदूरों के रिफॉर्म्स के लिए उन्हें अपने क्षेत्र में रोककर उनकी स्किल का पहचान करके उन्हें स्वावलंबी बनाने एवं स्वरोजगार उपलब्ध कराने के लिए आवाहन किया।  सप्लाई और डिमांड के बीच में सामंजस्य बैठाने की बात को दृढ़ता से रखा। उद्यमिता,  प्रोफेशनल एथिक्स जीएसटी एवं एच आर एम फील्ड ट्रेनिंग एंड डेवलपमेंट पब्लिक फंड आदि विषयों पर शोध कार्य करने के लिए छात्रों का आवाहन किया। इस सत्र में कई प्रतिभागियों ने अपने शोध पत्र भी प्रस्तुत किए जिसमें जबलपुर से डॉक्टर लवकुश ब्राम्हण ने कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा पर्यावरण में अधिक होने पर पार्थीनियम घास की वृद्धि अधिक होती है और उसके नियंत्रण के लिए जाईगोग्रामा जैसे बेटेल के उपयोग की बात कहीं। डॉ महेंद्र उपाध्याय ने प्राकृतिक संसाधन के प्रबंधन पर अपना शोध पत्र प्रस्तुत किया और उसके एक्सप्लॉइटेशन, कंजर्वेशन और मैनेजमेंट में राजनीतिक और सामाजिक भूमिका का विस्तार से वर्णन किया। कार्यक्रम का संचालन वेबिनार के आयोजक सचिव प्रोफेसर रमेश चंद्र त्रिपाठी ने उद्घाटन अवसर पर अतिथियों का स्वागत करते हुए आत्मनिर्भर भारत और शोध की दिशा और दशा पर अपना व्याख्यान  देते हुए शोधकर्ताओं का इस दिशा में काम करने के लिए आवाहन किया। प्रोफेसर सूर्यकांत चतुर्वेदी ने अतिथियों का आभार व्यक्त किया। इस पूरे कार्यक्रम का संचालन विश्वविद्यालय के आईटी सेल के प्रभारी प्रोफेसर भरत मिश्रा   ने सरलता पूर्वक संपन्न किया। इस कार्यक्रम में देश के 20 से अधिक प्रदेशों के कुल 875 से अधिक प्रतिभागियों ने भाग लिया जिसमें राष्ट्रीय संस्थाओं के वैज्ञानिक, विश्वविद्यालय के प्रोफेसर शिक्षक गण तथा शोध छात्रों ने अपनी सहभागिता की और अपने शोध पत्र प्रस्तुत किए।  वेबिनार के कोऑर्डिनेटर प्रोफेसर भरत मिश्रा ने आभार व्यक्त  किया।


Shubham Rai Tripathi
#thechitrakootpost

Comments

Popular posts from this blog

पुरातन छात्र सम्मेलन 2019

पं. दीनदयाल उपाध्याय की 104 वीं जयंती पर दीनदयाल शोध संस्थान चित्रकूट ने किये कई कार्यक्रम

टीम "मंथन" द्वारा घाट किनारे वॉल पेंटिंग कर दिया मंदाकिनी स्वच्छता का संदेश