ज्ञान, धर्म, कला, कौशल एवं साहित्य की पंच शक्तियों को जागृत कर स्वाधीनता संग्राम में महिलाओं ने अपने आप को आहूत किया : कुलपति प्रो गौतम


स्वतंत्रता आंदोलन में महिलाओं के योगदान पर ग्रामोदय विश्वविद्यालय में वेबीनार का आयोजन 

ज्ञान, धर्म, कला, कौशल एवं साहित्य की पंच शक्तियों को जागृत कर स्वाधीनता संग्राम में महिलाओं ने अपने आप को आहूत किया : कुलपति प्रो गौतम

चित्रकूट 15 सितंबर 2021। प्रथम विश्व युद्ध के पश्चात से ही भारत में विभिन्न महिला संगठनों की स्थापना के माध्यम से नारी शक्ति का स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान निरंतर प्रभाव बढ़ता चला गया। समाज में महिलाओं को परंपरागत रूप में दबाने का क्रम स्वतंत्रता आंदोलन में महिला सशक्तिकरण की निरंतर सक्रिय सहभागिता से दूर होती गई। पुरुष वर्ग ने नारी की शक्ति को पहचानते हुए उसे खुले मन से स्वीकार कर आजादी के आंदोलन में बढ़-चढ़कर अपना पूर्ण सहयोग प्रदान किया। उक्त आशय के विचार वेबीनार के मुख्य वक्ता शिक्षाविद प्रो नंदलाल , महात्मा गांधी काशी विश्वविद्यालय वाराणसी ने कही।
महात्मा गांधी चित्रकूट ग्रामोदय विश्वविद्यालय के कला संकाय के मानविकी एवं सामाजिक विज्ञान विभाग द्वारा आजादी के अमृत महोत्सव के अंतर्गत " स्वतंत्रता आंदोलन में महिलाओं का योगदान " विषय पर एक दिवसीय ऑनलाइन व्याख्यान माला आयोजन किया गया। प्रो नंदलाल ने स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के योगदान को रेखांकित करते हुए कहा कि गांधी जी ने राष्ट्रीय आंदोलन को जन आंदोलन में बदला जिससे कि गांव समाज में सामान्य से सामान्य महिलाओं की सहभागिता स्वतंत्रता आंदोलन में प्रखर होती चली गई। ब्रिटिश काल में अपनी क्षमता और उपलब्ध साधनों का प्रयोग करते हुए महिलाओं ने आंदोलन लड़ा। नारी शक्ति का राजनीतिक आंदोलन में आसानी से प्रभाव बढ़ता गया जिससे मौजूदा समय में सहजता से स्वीकार किया गया। पौराणिक काल में माता सीता, सावित्री , द्रौपदी आदि की नारी शक्ति का उदाहरण प्रस्तुत किया। 19वीं शताब्दी के प्रारंभ से आंदोलन ने गति पकड़ी , महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन, दांडी यात्रा, भारत छोड़ो आंदोलन आदि अनेक आंदोलनों में महिलाओं की प्रत्यक्ष भूमिका ने आंदोलन की गति को कुंद नहीं होने दिया। महिलाओं ने तात्कालिक परिस्थितियों में स्वदेशी व्रत का पालन , अहिंसा वादी आंदोलन, चरखा चलाकर सूत कातने , श्रम आंदोलन से जुड़ कर अपने स्तर से ब्रिटिश सरकार के दमन में क्रांतिकारियों को अपना जन सहयोग प्रदान किया। जिससे राष्ट्रीय आंदोलन धर्म युद्ध बना । 
कार्यक्रम का संयोजन एवं विषय प्रवर्तन करते हुए मानविकी एवं सामाजिक विज्ञान विभागाध्यक्ष डॉ नीलम चौरे ने कहा कि मध्य काल के बाद पर्दा प्रथा, सती प्रथा जैसी सामाजिक कुरीतियां स्त्री शक्ति को दमन करने के लिए भारतीय समाज में मौजूद थीं। ऐसे कालखंड में सामान्य वर्ग की महिलाओं की स्वतंत्रता आंदोलन में क्या भूमिका रही यह हमें आज जानने एवं समझने की आवश्यकता है। स्त्री शक्ति कठिन से कठिन परिस्थितियों का मुकाबला करने में सक्षम है। पौराणिक काल में देवासुर संग्राम में मां ने रणचंडी का रूप धारण कर असुर शक्ति का संहार किया। अट्ठारह सौ सत्तावन की क्रांति में रानी लक्ष्मीबाई ने ब्रिटिश सेना से लड़ने में नारी शक्ति को खड़ा किया। सन 1920 से लेकर स्वतंत्रता प्राप्ति तक विभिन्न आंदोलनों में महिला स्वतंत्रता सेनानियों की भूमिका स्पष्ट रूप से देखने को मिलती है। जिसमें साहित्य कला और सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में महिलाओं ने अपने योगदान को रेखांकित किया। आजादी का अमृत महोत्सव कार्यक्रम के माध्यम से स्थानीय स्तर पर स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़े लोगों के जीवन परिचय एवं आंदोलन से जुड़े स्वतंत्रता सेनानियों के कार्यों को संजोने का काम प्रशंसनीय है। 
वेबीनार कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर नरेश चंद्र गौतम ने आजादी के अमृत महोत्सव के उपलक्ष पर भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महिलाओं की भूमिका विषय पर इस आयोजन को प्रासंगिक बताया। प्रो गौतम ने कहा कि स्वतंत्रता आंदोलन मेंं महिलाओं के योगदान को नहीं भुलाया जा सकता। तत्कालीन ब्रिटिश कालीन विषम परिस्थितियों में भी भारतीय नारी ने अपने अपने स्थान से अपने ज्ञान, धर्म, कला, कौशल एवं साहित्य लेखन की पंच शक्तियों को जागृत कर राष्ट्र को समर्पित करते हुए स्वाधीनता संग्राम में अपने आप को आहूत किया। 
ग्रामोदय विश्वविद्यालय के कला संकाय अधिष्ठाता प्रो नंदलाल मिश्र ने स्वागत भाषण में कहा कि दुनिया में जीवन यापन करने के लिए धन , ज्ञान एवं शक्ति तीन महत्वपूर्ण बिंदु है। धन - माता लक्ष्मी, ज्ञान - माता सरस्वती एवं शक्ति - माता दुर्गा का स्वरूप है। महिलाओं की भूमिका से ही स्वतंत्रता आंदोलन का संघर्ष अपनी पूर्ण प्राप्ति की ओर बढ़ा।

कार्यक्रम का संचालन हिंदी विभाग के डॉ ललित सिंह ने किया। डॉ रघुवंश बाजपेई ने कार्यक्रम में उपस्थित समस्त जनों को आभार व्यक्त करते हुए कहा कि निसंदेह स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान रानी लक्ष्मी बाई, झलकारी बाई, सरोजिनी नायडू, लक्ष्मी सहगल, एनी बेसेंट आदि अनेकों अनेक महिला क्रांतिकारियों का सहयोग अपने शिखर पर था।

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