विश्व दुग्ध दिवस पर ग्रामोदय विश्वविद्यालय द्वारा वर्चुअल राष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित
विश्व दुग्ध दिवस पर ग्रामोदय विश्वविद्यालय द्वारा वर्चुअल राष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित
भारत की अर्थव्यवस्था में डेयरी का योगदान ' विषय पर हुआ विचार विमर्श
कानपुर औऱ चित्रकूट के कुलपतियों सहित एक दर्जन कृषि एवं पशुपालन प्राध्यापकों ने दिये मार्गदर्शक टिप्स
चित्रकूट, 01 जून 2021। महात्मा गांधी चित्रकूट ग्रामोदय विश्वविद्यालय के कृषि संकाय द्वारा एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी ' भारत की अर्थव्यवस्था में डेयरी का योगदान ' विषय पर आयोजित किया गया।
राष्ट्रीय संगोष्ठी के मुख्य वक्ता डॉ डी.आर सिंह , कुलपति चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय कानपुर उत्तर प्रदेश ने अपने वक्तव्य में कहा कि कोविड महामारी के दौरान हमारी आर्थिक व्यवस्था पर विशेष प्रभाव पड़ा है। लगभग 10 मिलियन लोगों ने अपने रोजगार के साधन एवं नौकरियां खोई है। मई के अंत तक 12% तक बेरोजगारी दर बढ़ी है। कोविड पैंडेमिक ने कृषि एवं डेयरी सेक्टर पर खासा प्रभाव डाला है। कृषि एवं पशु पालन व्यवसाय की भारत में ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालते हुए हड़प्पा संस्कृति से लेकर वर्तमान आधुनिक युग में पशुधन के महत्व पर प्रकाश डाला। कुलपति डॉ सिंह ने कहा कि लॉकडाउन के दौरान दूध को आवश्यक सामानों की सूची में रखा गया जिससे अर्थव्यवस्था को मजबूती तो मिली परंतु इसमें चुनौतियों का सामना भी करना पड़ा। जिसके अंतर्गत उन्होंने बताया कि लॉकडाउन के चलते होटल , ढाबा बंद होने से 20 से 25% तक दूध की खपत कम हुई। एक शहर से दूसरे शहर तक प्रवासी लोगों के आवागमन के चलते भी व्यवसााय प्रभावित हुआ। शहरी क्षेत्रों में भी दूध एवं उससे बने उत्पादों की खपत में कमी देखी गई। भारत में चाय-कॉफी दूध खपत का मुख्य स्रोत है। ट्रांसपोर्टेशन में कमी के चलते अंतर राज्य व्यापार प्रभावित हुआ। पशुधन की उन्नति के लिए सीमेन डोज को संरक्षित रखने के लिए लिक्विड नाइट्रोजन की आवश्यक पूर्ति भी प्रभावित हुई। कुलपति डॉ सिंह ने लॉकडाउन के दौरान डेयरी व्यवसाय से अर्थव्यवस्था में सुधार एवं स्थिरता भी देखने को मिली। प्रवासी लोगों ने घर गांव वापस आकर डेयरी व्यवसाय को अपनाया। स्थानीय स्तर पर दूध एवं उससे बने पदार्थों को बेहतर दाम उपलब्ध हुए। लॉकडाउन के चलते समाज का एक बड़ा वर्ग जो मांसाहारी था, वह मीट बेस से मिल्क बेस्ड प्रोडक्ट पर अपनी निर्भरता बढ़ाता गया। आज विश्व दुग्ध दिवस भी है। भारत में विशेष रुप से ग्रामीण क्षेत्रों में किसान पशुपालन को, पशुधन से अतिरिक्त आय के रूप में देखता है। महामारी के दौरान देश में कोविड कर्फ्यू में भी दूध एवं दुग्ध उत्पाद को प्राथमिकता देते हुए इस व्यवसाय को सुचारू रूप से चलाए रखने की अनुमति दी गई थी। व्यवसाय से जुड़े हुए व्यक्तियों को स्वयं के साथ ही राष्ट्र की अर्थव्यवस्था में योगदान करने का अवसर मिल सका।
डॉ बृजेश सिंह, प्रोफेसर एलपीएम डीएसडब्ल्यू, जी.बी.पंत विश्वविद्यालय पंतनगर उत्तराखंड, ने अपनी बात को रखते हुए कहा कि हम जब भी भारत के संदर्भ में पशुपालन की बात करते हैं तो , एक गौरवशाली अतीत का चित्रण स्पष्ट हो जाता है। महाभारत काल में भगवान श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं में दूध, घी, मक्खन आदि के वर्णन से हम आप सभी भलीभांति परिचित हैं। भारतवर्ष युगों युगों से पशुधन एवं दुग्ध उत्पादन में अग्रणी रहा है। कामधेनु शब्द की उत्पत्ति भी उसी कालखंड में हुई। उन्होंने वर्तमान व्यवस्था के अनुसार यूज़ एंड मिस यूज़ की थ्योरी को परिभाषित करते हुए कहा कि समय काल खंड के अनुसार वस्तुओं की मांग भी प्रभावित होती रहती है। लॉकडाउन के दौरान दूध एवं उससे बने उत्पाद प्रमुख रूप से बाजार में बने रहे। गोवंश, मुर्गी पालन आदि में वृद्धि हुई। फार्म एनिमल की बात करते हुए लाइव स्टॉक के अंतर्गत उन्होंने पोल्ट्री, मछली पालन, सूअर पालन आदि के व्यवसायिक महत्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने किसानों के लिए इसे रेगुलर इनकम का मुख्य स्रोत बताते हुए कहा कि यह पशुधन एटीएम की तरह कार्य करते हैं जिसे हम एनी टइम मिल्क एवं एनी टाइम मनी के रूप में अपने उपयोग में ला सकते हैं। जहां कृषि योग्य भूमि कम है वहां कम स्थान पर भी पशुधन के माध्यम से अधिक लाभ कमाया जा सकता है। परंतु पशुपालन भी मानसून की अनियमितता , घास भूमि की कमी , पशुओं के लिए आवश्यक मूलभूत सुविधाओं की अनुपलब्धता व्यवसाय को प्रभावित कर रही हैं। जब भी हम दुग्ध उत्पादन की बात करते हैं तो उसमें न केवल गौ पालन ही शामिल है अपितु उस में भैंस एवं बकरी भी अपना महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं। उन्होंने कार्यक्रम में मौजूद विद्यार्थियों, कृषि वैज्ञानिकों, एवं प्राध्यापकों से अपने ज्ञान के योगदान को ग्रामीण क्षेत्रों में किसानों के मध्य जाकर शिक्षित करने के लिए संकल्प लेने की बात कही।
डॉ बीरेंद्र कुमार मिश्रा, डिपार्टमेंट ऑफ रूरल डेवलपमेंट एंड एग्रीकल्चर प्रोडक्शन नॉर्थ-ईस्टर्न हिल विश्वविद्यालय कैंपस मेघालय, ने पोटेंशियल्टी ऑफ प्रोबायोटिक माइक्रो ऑर्गेनाइज्म एंड फर्मेंटेड डेयरी फूड्स टू कॉम्बैट कोविड-19 पैंडमिक पर पावर पॉइंट प्रेजेंटेशन के माध्यम से डेयरी व्यवसाय के संदर्भ में दूध से बने पदार्थों में प्रोबायोटिक्स के महत्व पर प्रकाश डाला। प्रोबायोटिक्स कंजप्शन के अंतर्गत लैक्टिक एसिड बैक्टीरिया, ईस्ट एवं मोल्डस को बताते हुए इसके विभिन्न महत्त्व को आवश्यक बताते हुए विभिन्न उदाहरणों से स्पष्ट किया।
डॉ अंजनी कुमार मिश्रा, प्रोफेसर एंड हेड एलपीएम, एनडीवीएसयू रीवा मध्य प्रदेश, ने बताया कि भारत में दुग्ध उत्पादन वर्ष 2019-20 में 187.2 मिलियन टन रहा। विश्व में कुल दुग्ध उत्पादन में 17% योगदान भारत का है। एवं एशिया क्षेत्र में कुल दूध उत्पादन में 57 फ़ीसदी हिस्सेदारी भारत की है। वर्तमान में डेयरी उत्पादन को व्यवसायिक रूप से बढ़ावा देने के लिए विभिन्न प्रकार की केंद्रीय एवं राज्य स्तरीय इसकी में चलाई जा रही हैं जिससे कि दूध एवं उससे बने पदार्थों के व्यवसाय को नई गति एवं दिशा मिल रही है। उन्होंने दूध उत्पादन को विस्तार देते हुए बताया कि वर्तमान में कुल उत्पादन का 60.64% गैर संगठित क्षेत्र, 27 से 30% संगठित क्षेत्र, 9 से 10% निजी क्षेत्र से प्राप्त होता है। केवल 12 से 15% ही दूध की प्रोसेसिंग संभव हो पाती है। जबकि विश्व में दूध प्रोसेसिंग का शेयर, कुल उत्पादन का 70 फ़ीसदी है। तरल दूध 46%, घी 33% , दही 7%, खोवा 7% एवं छेना 3% आदि उपयोग में लाया जाता है। दुग्ध उत्पादन में गोवंश - 3.41 एल दूध प्रतिदिन, भैंस से 5.76 एल दूध प्रतिदिन है। 11.44 मिलियन लोग इस व्यवसाय से जुड़े हुए हैं। डेयरी व्यवसाय 1.13 लाख गांव में यह 5.65 लाख रोजगार प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से दे रहा है।
वेब संगोष्ठी के संरक्षक एवं ग्रामोदय विश्वविद्यालय के कुलपति व प्रख्यात कृषि वैज्ञानिक प्रोफेसर नरेश चंद्र गौतम ने अपने विशिष्ट उद्बोधन में कहा कि भारतीय संस्कृति में कृषि सदैव सर्वोपरि रही है। भारतीय कृषि परंपरा में यदि पशु की बात ना की जाए तो कृषि अधूरी मानी जाती है। पशु आज अतिरिक्त संपत्ति के रूप में देखे जाते हैं । परंतु हम गुणवत्ता में पीछे हैं इसलिए गुणवत्ता पर विशेष ध्यान देते हुए इसमें सुधार की आवश्यकता है। गुणवत्ता सुधार के साथ ही हम उत्पादन में भी आगे बढ़े। कृषि हेतु पशु आधारित ऑर्गेनिक खाद का इस्तेमाल करें। रसायनिक खादों का दुष्परिणाम आज हमें अनेक रूपों में देखने को मिल रहा है। प्रोफेसर गौतम ने अपने कृषि अनुभवों को साझा करते हुए कहा कि वर्तमान समय में भारत ने पशु चिकित्सा विज्ञान क्षेत्र में भी तरक्की कर ली है। इसलिए हमें पशुओं के स्वास्थ्य पर भी विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है अन्यथा हमारा दुग्ध उत्पादन भी प्रभावित होता है यह ज्ञान ग्रामीण स्तर पर दुधारू पशु पालकों में कम होता है। पशु चिकित्सा के लिए ग्रामीण स्तर पर किसानों को जागरूक करने की आवश्यकता पर कुलपति प्रोफेसर गौतम ने बल दिया। इसके साथ ही आर्थिक रूप से मजबूत होने के लिए किसानों को अच्छी दुधारू पशु नस्ल के माध्यम से पशु पालन को व्यवसायिक दृष्टिकोण से अपनाने की सलाह दी।
कृषि संकाय के अधिष्ठाता प्रो देव प्रभाकर राय ने विषय प्रवर्तन करते हुए संगोष्ठी के संदर्भ में प्रकाश डालते हुए विश्व दुग्ध दिवस के महत्व को परिभाषित करते हुए उसकी उपयोगिता एवं महत्व को वर्णन किया। पशु पालकों के लिए डेयरी व्यवसाय लाभ का किस प्रकार बन सकता है उस पर चर्चा की।
एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी कार्यक्रम का संचालन कार्यक्रम के आयोजन सचिव एवं कृषि संकाय के डॉ पवन सिरोठिया ने किया ।कृषि संकाय के डॉ योगेंद्र सिंह ने आभार प्रदर्शन करते हुए वेब संगोष्ठी में उपस्थित मुख्य अतिथियों, कृषि वैज्ञानिकों एवं कार्यक्रम के आयोजन कर्ताओं का आभार प्रदर्शन किया। राष्ट्रीय कार्यक्रम के आयोजन सचिव डॉ उमेश कुमार शुक्ला ने आयोजन के औचित्य और महत्व पर प्रकाश डाला। प्रो भरत मिश्रा निदेशक आईटी सेल व कृषि संकाय के श्रीकांत मौजूद रहे।
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