डीआरआई ने ग्रामीण केंद्रों पर मनाया रानी दुर्गावती का 758वां बलिदान दिवस

डीआरआई ने ग्रामीण केंद्रों पर मनाया रानी दुर्गावती का 758वां बलिदान दिवस

वीरांगना दुर्गावती महिलाओं को कमजोर समझने वालों के लिए एक उदाहरण थी - अभय महाजन

चित्रकूट 24 जून 2021। वीरांगना रानी दुर्गावती के 758 वें बलिदान दिवस पर उनकी राष्ट्रभक्ति और उनके कृतित्व को दीनदयाल शोध संस्थान द्वारा अपने सभी स्वाबलंबन केंद्रों पर पूरी श्रद्धा के साथ याद किया गया। 

रानी दुर्गावती के बलिदान दिवस पर गुरुवार को चित्रकूट जनपद एवं मझगवॉ जनपद के कई गांव में विविध कार्यक्रम आयोजित किए गए। इस अवसर पर ग्राम अमिलिया, कोलगद्दैया, चनहट, हरदौली, गनीवा, इटरौर, डडिया तथा पगार कला, सोनवर्षा, भरगवां, सिंहपुर, साड़ा, रानीपुर, चुआ, भियामऊ, गुझवां, चितहरा आदि ग्रामों में समाजशिल्पी दंपत्ति परिवारों सहित ग्राम वासियों ने उनके चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित करके वीरांगना को याद किया। इस अवसर पर दीनदयाल शोध संस्थान के संगठन सचिव श्री अभय महाजन एवं श्री राजेंद्र सिंह, श्री हरिराम सोनी ने भी श्रद्धा सुमन अर्पित किए‌। 


दीनदयाल शोध संस्थान के कार्यकर्ता श्री राजेंद्र सिंह ने कहा कि रानी दुर्गावती बुंदेलखंड और गोंडवाना अंचल ही नहीं पूरे देश की शान थी। उनका शौर्य आज भी अनुकरणीय और नारी शक्ति के गौरव व गरिमा का प्रतीक है। मुगल शासकों को अपने पराक्रम से पस्त करने वाले वीर योद्धाओं में रानी दुर्गावती का नाम भी शामिल है‌। उन्होंने आखिरी दम तक मुगल सेना का सामना किया और उसकी हसरतों को कभी पूरा नहीं होने दिया। 24 जून 1964 को यह युद्ध भूमि में लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हो गई। रानी दुर्गावती का जन्म 1524 में हुआ था और वह कालिंजर के राजा कीर्ति सिंह चंदेल की एकमात्र संतान थी। 

डीआरआई के संगठन सचिव श्री अभय महाजन ने कहा कि वीरांगना रानी दुर्गावती महिलाओं को कमजोर समझने वालों के लिए एक उदाहरण थी। उन्होंने 16 वर्ष तक गोंडवाना साम्राज्य पर राज्य किया। मध्यप्रदेश का रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय उन्हीं के नाम पर है। 


श्री महाजन ने बताया कि रानी दुर्गावती का जल प्रबंधन आज भी प्रासंगिक है। इतिहास इस बात का साक्षी है कि रानी दुर्गावती ने उस जमाने में नये छोटे से जबलपुर शहर में 52 तालाब और 84 तलैया की स्थापना कराई, इनका खनन कराया। यह सभी ताल-तलैया बेहतर जल प्रबंधन की एक मिसाल थी‌। जिनकी प्रासंगिकता आज भी बरकरार है। विदित हो कि मदन महल की पहाड़ी पर बने महाराज ताल का पानी देवताल फिर वहां से सूपाताल, इमरती ताल आदि तक जाता था। नैसर्गिक संरचना के अनुरूप खंडित किए गए इन तालाबों में वर्ष भर लगावत पानी भरा रहता था‌। यह तालाब आज भी शहर के धरातल के पानी को रिचार्ज और मेंटेन किए हुए हैं।

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