आरोग्यधाम चित्रकूट में बापू की राम कथा का तीसरा दिन


'रामचरित मानस' ही सत्य, प्रेम, करुणा का प्रत्यक्ष परिचय है - मोरारी बापू

आरोग्यधाम चित्रकूट में बापू की राम कथा का तीसरा दिन

चित्रकूट 31 मई 2021। दीनदयाल शोध संस्थान के आरोग्यधाम परिसर चित्रकूट में अर्न्तराष्ट्रीय मानस मर्मज्ञ संत मोरारी बापू ने रामकथा के तीसरे दिन‘‘ प्रनवऊ प्रथम भरत के चरना, जासु नेम ब्रत जाइ न बरना। रामचरन पंकज मन जासू, लुबुध मधुप इव तनइ न पासू।।‘‘ चौपाई के माध्यम से भरत जी का सजीव चित्रण कराते हुऐ मानस भरत जो इस नौ दिवसीय रामकथा का केन्द्र बिन्दु है, इसको परिक्रमा करते हुये एक संवाद के रूप में भरत जी का दर्शन कराया। 

कथा के माध्यम से मोरारी बापू ने कहा कि इस परम पावन चित्रकूट धाम में सहज स्वाभाविक नौ दिवसीय रामकथा के तीसरे दिन के आरंभ में मंदाकिनी के प्रवाहमान चेतना को, स्फटिक शिला की प्रकाशवान चेतना को, कामदगिरि की धीर गंभीर चेतना को, अनुसुइया जी-सुतीक्षण मुनि जी की व्रतमयी चेतना को व्यासपीठ से मेरा प्रणाम। भरत धर्मज्ञ है। भरत जी के नियम, व्रत का वर्णन नहीं किया जा सकता। 

भरत चरित्र पर राम कथा को समर्पित करते हुए बापू ने कहा कि भरत चरित्र को बखान नहीं किया जा सकता। एक साधू कहता है जिसको भव सागर में रूची है, भव सागर में लिप्तता है उसे भरत कहते हैं। ’’भय बिन होय न प्रीति’’ जहॉ प्रेम है वहा भय इस बात का है कि कही दाग न लग जाऐ। लेकिन जब प्रीति हो जाए तो भय भी सुन्दर लगता है। इस प्रसंग को सुनाते समय बापू बहुत ज्यादा भाव-विभोर हो गए।

उन्होने कहा कि प्रेम मे, भक्ति में विश्वास अखण्ड रहता है लेकिन कभी-कभी भय भी रहता है कि कही कोई चूक न हो जाए। मानस के जितने भी प्रेमी है उन सबको एक जगह इकठ्ठा करके उन सब के विविध प्रेम को एकत्रित करें और देखें कि वो सब एक ही जगह भरत में मिलेगें। परम व्यवस्था का नाम ही परमात्मा है। रामचरित मानस ही सत्य, प्रेम, करुणा का प्रत्यक्ष परिचय है।

मोरारी बापू ने अमृत वर्षा करते हुए कहा कि मानस भरत चरित में संस्कार, चरित्र और आचरण का खजाना भरा पड़ा है। आस्था अनुसार जितना चाहे लूट लो, तुम्हें कोई रोकने वाला नहीं है। परमात्मा ने स्वभाव में गरीबी दी हो तो ग्लानि मत करना। हरिनाम उसका सफल होता है, जिसका स्वभाव सरल होता है।
 
कथा के दौरान श्रद्धालुओ द्वारा कुछ प्रश्न भी बापू से पूछे गऐ जिसका शंका-समाधान उनके द्वारा किया गया। एक श्रद्धालु ने पूछा बापू आपने कल कहा था मेरे मन का कहां ठिकाना पता नहीं कब कहां चला जाए, बापू 859 कथा कहने के बाद भी मन नियंत्रित नहीं। बनारस के एक शिष्य ने पूछा बापू आप सोमनाथ से कामदनाथ आ गए विश्वनाथ कब आएंगे।

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