थाईलैंड सहित भारत के चिकित्सा विद्द्वानो ने अपने विचार रखे


ग्रामोदय यूनिवर्सिटी द्वारा कोरोना से बचाव के लिए अंतर्राष्ट्रीय वर्चुअल संगोष्ठी आयोजित

थाईलैंड सहित भारत के चिकित्सा विद्द्वानो ने अपने विचार रखे

आयुर्वेद,योग एवं प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति को अपनाये - डॉ अलका गुप्ता, थाईलैंड

दूषित खान पान शैली को त्यागें - कुलपति प्रो गौतम

 आयुर्वेद,योग एवं प्राकृतिक चिकित्सा के द्वारा कोरोना से बचाव विषय को लेकर विद्द्वानो ने किया वर्चुअल वार्ता

चित्रकूट , 26 मई 2021। वैश्विक महामारी कोविड-19 के चलते देश सामाजिक आर्थिक चुनौतियों का सामना कर रहा है। मनुष्य जाति विशेष रूप से प्रभावित हुई है। मानव शरीर में अनेक प्रकार के विकार उत्पन्न होने के चलते व्यक्ति शारीरिक एवं मानसिक कष्ट भोग रहा है। वर्तमान परिस्थितियों के निदान हेतु आयुर्वेद योग प्राकृतिक चिकित्सा का महत्व बताते हुए डॉ अलका गुप्ता, थाईलैंड ने आयुर्वेद पद्धति पर प्रकाश डाला। महात्मा गांधी चित्रकूट ग्रामोदय विश्वविद्यालय के शाश्वत प्रेरणा स्रोत भारत रत्न राष्ट्र ऋषि नानाजी देशमुख, की प्रेरणा औऱ कुलाधिपति श्रीमती आनंदीबेन पटेल, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के निर्देशन व विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो नरेश चंद्र गौतम के संरक्षक्तव में अभियांत्रिकी एवं प्रौद्योगिकी संकाय द्वारा एक दिवसीय अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी ' आयुर्वेद योग प्राकृतिक चिकित्सा के द्वारा कोरोना से बचाव विषय को लेकर'आयोजित की गई। 
कार्यक्रम की मुख्य वक्ता डॉ अलका गुप्ता, कंट्री हेड अंतरराष्ट्रीय प्राकृतिक चिकित्सा थाईलैंड ने आयुर्वेद की महत्वता को परिभाषित करते हुए बताया कि आयुर्वेद में चरक संहिता का वर्णन पांच से छः हजार वर्ष पूर्व मिलता है। आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति वैज्ञानिक है। शरीर को स्वस्थ एवं निरोग बनाने के लिए यम नियम प्रथम सीढ़ी है। प्रकृति से हटकर जीवन यापन करने से आज हम इस समस्या से ग्रसित हैं। आत्मा की शुचिता के लिए कर्म इंद्री एवं ज्ञान इंद्री पर नियंत्रण आवश्यक है। चरक संहिता में समस्या के साथ निवारण भी है। उन्होंने आयुर्वेद में तीन चिकित्सा पद्धतियों का वर्णन किया। कुवैत के प्रभाव से बचने के लिए दैनिक दिनचर्या में अपने आहार, व्यवहार एवं विचार स्तर पर ध्यान देने की महती आवश्यकता बताई। आज भी हमें समाज में अपने बीच शतायु आयु वर्ग के लोग दिख जाते हैं ऐसा इसलिए संभव हो पाता है क्योंकि व्यक्ति प्रारंभ से ही अपनी दैनिक जीवन शैली को संतुलित एवं प्राकृतिक रखता है। जिसका दीर्घ परिणाम आयु के रूप में देखने को मिलता है। आयुर्वेद में तीन गुण सत,रज एवं तम का वर्णन है। रसायन चिकित्सा के महत्व पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने आहार रसायन, आचार रसायन, बल रसायन के प्रकारों को परिभाषित किया। कोविड‌ संक्रमित होने के पश्चात उसके दुष्प्रभाव भी सामने आ रहे हैं। इसलिए हमें शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को सुचारू रूप से गतिमान बनाए रखने के लिए आयुर्वेद योग एवं प्राकृतिक चिकित्सा अपनानी चाहिए। धातु का क्षय होना, कृमि की शिकायत , मंदाकिनी क्षरण होना यह समस्याएं प्रमुखता से देखने को मिल रही है। जिस के निदान के लिए पाचन तंत्र का मजबूत होना आवश्यक है। जिसके लिए अग्नि को सम भाव में रहना चाहिए। आयुर्वेद एवं प्राकृतिक चिकित्सा बीमारी का नहीं पूरे शरीर का इलाज करती है। शरीर में धातु पोषण के लिए सतावर, ब्रह्म पुष्पी, अश्वगंधा आदि को गुणकारी बताया। बीमारी के दौरान शरीर में विजातीय तत्व इकट्ठा हो जाते हैं इसके लिए रसायन चिकित्सा का प्रयोग करके कोविड संक्रमण के बाद शरीर को लाभ एवं स्वस्थ रखा जा सकता है।
 डॉ अलका गुप्ता ने किचन में उपलब्ध विभिन्न भारतीय मसालों के औषधीय गुण के महत्व और प्रयोग को विस्तार पूर्वक साझा किया। पंचकर्म ,ऑयल पुलिंग से स्वसन तंत्र को मजबूत किया जा सकता है। हमें वर्तमान परिस्थिति अनुसार अपने आहार में मौसमी फल एवं सब्जियों का भरपूर प्रयोग करना चाहिए। योग की विभिन्न मुद्राएं एवं प्राणायाम एक्यूप्रेशर के माध्यम से शरीर की व्याधियों के निवारण हेतु क्रियाएं बताई । इसके साथ ही आयुर्वेदिक रेसिपी संजीवनी पेय, मेथी की चाय, जोकर का उपयोग आदि उदाहरण देकर महत्त्व बताया। डॉ अलका गुप्ता ने कहां की यह कोविड संक्रमण हमें यह अवसर दे रहा है कि हम अपने हजारों वर्षों की आयुर्वेद योग एवं प्राकृतिक चिकित्सा के ज्ञान को अपने दैनिक जीवन शैली में अपनाएं और स्वस्थ एवं निरोगी काया को जीयें। शरीर स्वस्थ रखने के लिए पश्चात खानपान शैली का त्याग कर, अपने आहार जीवन शैली को भारतीय परंपरा अनुसार अपनाएं। डॉ अलका गुप्ता ने वेब संगोष्ठी में प्रतिभागियों की समस्याओं का आयुर्वेदिक समाधान भी बताया। 
विशिष्ट वक्ता डॉ आलोक मिश्रा , ज्वाइंट सेक्रेट्री ऑल इंडिया यूनिवर्सिटी एसोसिएशन ने लोगों से वास्तविक एवं व्यावहारिक जीवनशैली अपनाने की बात की। स्वस्थ मन, मस्तिष्क, प्राकृतिक चिकित्सा, आयुर्वेद एवं योग को अनुशासन के साथ अपनाने से ही संभव है।
अंतर्राष्ट्रीय वेब संगोष्ठी कार्यक्रम के संरक्षक विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो नरेश चंद्र गौतम ने अध्यक्षता की।इस अवसर पर उन्होंने वार्ता को सार्थक बताते हुए कहा कि आयुर्वेद , योग व्यक्ति को प्रकृति से जुड़ने का अवसर प्रदान करता है। जिसका वर्तमान परिस्थिति अनुसार मानव शरीर को आवश्यकता भी है। उन्होंने कहा कि आज से सौ से डेढ़ सौ वर्ष पूर्व की दिनचर्या और आज आधुनिक युग की दिनचर्या की तुलना में वर्तमान भौतिक जीवन शैली भोग वादी है। जिससे हमारा शरीर शारीरिक एवं मानसिक रूप से कमजोर होता जा रहा है और विशेष रूप से दूषित खान पान शैली से पीढ़ी दर पीढ़ी हमारे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता भी प्रभावित हो रही है। जब हम शरीर के अंदर मौजूद बायो सेंसर के विरुद्ध जाकर कार्य करते हैं तब यह शरीर रोगी हो जाता है। इसलिए आवश्यक है कि हम अपने दैनिक जीवन में आयुर्वेद, योग प्राणायाम एवं प्राकृतिक चिकित्सा को महत्व दें। 
अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी का संचालन एवं आभार प्रदर्शन करते हुए अभियांत्रिकी एवं प्रौद्योगिकी संकाय के अधिष्ठाता डॉ आंजनेय पाण्डेय ने योग ,आयुर्वेद एवं प्राकृतिक चिकित्सा को स्वास्थ्य की त्रिवेणी बताते हुए कहा कि त्रिवेणी के अनुशासित एवं दैनिक प्रयोग से हम शरीर को सुदृढ़ एवं रोग मुक्त बना सकते हैं।कार्यक्रम के आयोजन सचिव एवं वैद्य डॉ राकेश कुमार श्रीवास्तव प्रभारी आयुर्वेद ने कार्यक्रम के प्रारंभ में मुख्य अतिथि का स्वागत एवं उनके वैशिष्ट्य की परिचय किया और इस अंतरराष्ट्रीय वर्चुअल संगोष्ठी के विषय की अवधारणा पर प्रकाश डाला। 
इस कार्यक्रम में तकनीकी सहयोग इंजी विवेक सिंह, इंजी गोविंद सिंह, नीरज एवं संचार एक्सपर्ट शुभम राय त्रिपाठी भी मौजूद रहे।

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