कोरोना संक्रमण के दौर ने हमें फिर से परंपरागत और स्वदेशी की ओर बढ़ने का दिया अवसर - अभय महाजन
कोरोना संक्रमण के दौर ने हमें फिर से परंपरागत और स्वदेशी की ओर बढ़ने का दिया अवसर - अभय महाजन
चित्रकूट , 18 जुलाई 2020। किसी भी देश को सुसंपन्न और सामर्थ्यवान बनाने में स्वदेशी भाव का बहुत बड़ा योगदान होता है। वर्तमान समय में इसकी प्रासंगिकता महसूस की जाने लगी है। अपने बाजार को दूसरे देशों के हवाले करने से उस देश का आर्थिक आधार मजबूत होता जाएगा, लेकिन अपना खुद का देश बहुत पीछे चला जाएगा। स्वदेशी के विचार को जीवन में धारण करने से जहां हम स्वयं मजबूत होंगे, वहीं गांव, शहर और देश भी स्वावलंबन की दिशा में कदम बढ़ाएगा और यही समृद्धि का रास्ता है। इन्ही सब बातों को लेकर रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय जबलपुर एवं दीनदयाल शोध संस्थान चित्रकूट तथा इतिहास संकलन समिति महाकौशल व रानी दुर्गावती शोध संस्थान जबलपुर और इतिहास विभाग रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय के संयुक्त तत्वाधान में "स्वदेशी आंदोलन की वर्तमान परिपेक्ष में प्रासंगिकता" विषय पर राष्ट्रीय संगोष्ठी का ऑनलाइन गूगल मीट पर आयोजन किया गया।
इस राष्ट्रीय संगोष्ठी में मुख्य अतिथि एवं वक्ता के रूप में दीनदयाल शोध संस्थान के संगठन सचिव अभय महाजन की उपस्थिति रही तथा अध्यक्षता रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर कपिल देव मिश्र द्वारा की गई एवं विशिष्ट अतिथि के रूप में प्रसिद्ध नेत्र रोग विशेषज्ञ एवं रानी दुर्गावती शोध संस्थान के अध्यक्ष डॉ पवन स्थापक उपस्थित रहे। इस दौरान इतिहास विभाग के विभागाध्यक्ष प्रोफेसर सुभाष शर्मा रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय एवं शासकीय महाकौशल आर्ट एवं कॉमर्स स्वशासी महाविद्यालय जबलपुर के इतिहास विभाग के विभागाध्यक्ष प्रोफेसर अलकेश चतुर्वेदी भी उपस्थित रहे।
राष्ट्रीय संगोष्ठी का शुभारंभ करते हुए अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कुलपति प्रोफ़ेसर कपिल देव मिश्र ने कहा कि जब आत्म निर्भरता की बात आती है तो भारत का इतिहास सनातन काल से ही ऐसा रहा है जहां स्वदेशी के अनुकूल ही हमारा जीवन रहा है। लोकल को वोकल करते हुए और लोकल को ग्लोबल की ओर ले जाने का हमारा यह संकल्प निश्चित तौर पर एक नए मुकाम की ओर ले जाएगा। उन्होंने कहा कि हमने योजना बनाई है कि हमारे जो भी महाविद्यालय हैं उनमें सामाजिक संस्थाओं और विश्वविद्यालय के सहयोग से आत्मनिर्भरता के इस महाभियान को आगे तक ले जाने के लिए प्रतिबद्ध हैं। उन्होंने चित्रकूट में दीनदयाल शोध संस्थान के स्वावलंबन के प्रयोगों की बात करते हुए कहा कि भारत रत्न नानाजी देशमुख प्रयोगवादी व्यक्ति थे उन्होंने साबित करके दिखाया था कि समता और स्वाबलंबन के मूल मंत्र में वह ताकत है, जो भारत को विश्व पटल पर सशक्त राष्ट्र के रूप में स्थापित करा सकता है। नानाजी ने दीनदयाल शोध संस्थान के माध्यम से समाज जीवन के सभी पहलुओं पर जनता की पहल और पुरुषार्थ के द्वारा युगानुकूल सामाजिक पुनर्रचना की दिशा में एक अनुकरणीय नमूना प्रस्तुत करने का बीड़ा उठाया। उनके सभी कार्य समाज और राष्ट्र के लिए अनुकरणीय रहे हैं। शिक्षा ही एकमात्र आधार है जो सभी क्षेत्रों में दिशा देकर स्वावलंबन के पथ को प्रशस्त करने का माध्यम बन सकता है।
इस अवसर पर अपने मुख्य अतिथि उद्बोधन में दीनदयाल शोध संस्थान के संगठन सचिव अभय महाजन ने कहा कि बगैर स्वावलंबन के स्वाभिमान नहीं आ सकता है। इसके लिए श्रद्धेय नानाजी देशमुख ने अपना सारा जीवन लगा दिया। पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी ने एकात्म मानव दर्शन का जो विचार हम सबके सामने रखा, वह भारतीय दर्शन का निचोड़ है, उनके उसी विचार को आगे बढ़ाने का कार्य श्रद्धेय नानाजी ने किया। दीनदयाल जी ने देश को ऐसा दर्शन दिया जो पूर्णरूपेण स्वदेशी तो था लेकिन युगानुकूल पुरुषार्थ के लिए भी प्रेरित करता था। भारतीय संस्कृति व सनातन परंपरा के सभी तत्वों को पिरोकर गढ़ा था उन्होंने यह दर्शन। जब किसी व्यक्ति के विचार का कोई वाहक बनता है तभी व्यक्ति के जीवन की सार्थकता सिद्ध होती है। नानाजी, पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी के विचार वाहक थे और पंडित जी के सूत्र रूप में कहीं बात को व्यवहार में लाने का काम दीनदयाल शोध संस्थान कर रहा है। उन्होंने कहा कि एक लंबे कालखंड तक विदेशी आक्रांताओं ने समय-समय पर हमारी सांस्कृतिक विरासत को तोड़ने-मरोड़ने का प्रयास किया। उन सबने हमारी मानसिकता को गुलाम बना दिया। आज उस कुचक्र को तोड़ते हुए मजबूती के साथ स्वदेशी के इस आंदोलन में हम सबको एकजुटता के साथ फिर से खड़ा होना होगा।
श्री महाजन ने कहा कि हमारी जो परंपरागत और पुरातन पंती बातें हैं, जो आज के समय में कई बातें दकियानूसी भी कई जाती हैं। वह सब हम समय के साथ भूलते जा रहे हैं। पुरानी जो भी परंपराएं रही हैं, उन सबमें कुछ ना कुछ वैज्ञानिक दृष्टिकोण रहा है। हमारी प्राचीन रसोई भी हमारी वैध रही है, उन सब बातों को आज फिर से अपनी दिनचर्या मैं अनुपालन करने की जरूरत है। कोरोना संक्रमण काल में हमें फिजिकल डिस्टेंसिंग के साथ स्वच्छता का भी ध्यान रखना है। वर्तमान संक्रमण के इस दौर ने हमें फिर से हमारी परंपरागत और स्वदेशी विचार के साथ आगे बढ़ने का अवसर दिया है।
इस दौरान प्रसिद्ध नेत्र विशेषज्ञ डॉक्टर पवन स्थापक ने अपने उद्बोधन में कहा कि कोरोना महामारी ऐसी आपदा का अवसर लेकर आई है। ऐसे समय में प्रधानमंत्री जी को भी लगा, कि इस आपदा को अवसर में कैसे बदला जाए। आज कोरोना की वजह से सब तरफ से आयात और निर्यात बंद है, ऐसे हालात में हमें आत्मनिर्भरता की ओर कदम बढ़ाते हुए स्वदेशी का हर क्षेत्र में उत्पादन बढ़ाना है। कोरोना हमारे लिए स्वदेशी का एक अवसर लेकर आया है, स्वदेशी की यात्रा शुरू हुई है तो निश्चित तौर पर हम सफलता के मुकाम पर भी अवश्य पहुंचेंगे।
इस मौके पर इतिहास विभाग के विभागाध्यक्ष प्रोफेसर अलकेश चतुर्वेदी द्वारा भी संबोधित किया गया और इतिहास विभाग की राजुल अग्रवाल द्वारा सभी का धन्यवाद ज्ञापित किया गया।
Shubham Rai Tripathi
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