परंपरागत कृषि में तकनीकी के समावेश से गांव बनेंगे आत्मनिर्भर : प्रोफेसर गौतम
भारतीय किसान संघ द्वारा आयोजित फेसबुक लाइव के माध्यम से
आत्मनिर्भर भारत में ग्रामों की भूमिका पर कुलपति प्रोफेसर एन सी गौतम का व्याख्यान।
परंपरागत कृषि में तकनीकी के समावेश से गांव बनेंगे आत्मनिर्भर : प्रोफेसर गौतम
चित्रकूट 25 जून 2020। भारतीय किसान संघ द्वारा आत्मनिर्भर भारत में ग्रामों की भूमिका विषय पर फेसबुक लाइव के माध्यम से आयोजित कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के रूप में महात्मा गांधी चित्रकूट ग्रामोदय विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर नरेश चंद्र गौतम ने देश के किसानों को संबोधित किया।
कुलपति प्रोफेसर एन.सी गौतम ने आत्मनिर्भर भारत में गांव एवं ग्रामीणों की भूमिका क्या होगी , क्या उनका भविष्य होगा को महत्वपूर्ण बताया। उन्होंने देश प्रदेश के किसानों का सर्वप्रथम अभिवादन करते हुए प्रभु श्री राम की तपोस्थली और भारत रत्न राष्ट्रीय श्री नानाजी देशमुख की कर्म स्थली से प्रणाम किया। विषय प्रवर्तन करते हुए प्रोफेसर गौतम ने संबोधित करते हुए कहा कि आज आत्मनिर्भर भारत की दिशा में कार्य योजना तैयार की जा रही है। परंतु चित्रकूट में राष्ट्र ऋषि भारत रत्न नानाजी देशमुख ने वर्ष 2001 में ही आत्मनिर्भर गांव का अभियान प्रारंभ कर दिया था। नानाजी देशमुख का कहना था कि भारत देश की 68 फ़ीसदी जो आबादी है वह गांवों में बसती है। यदि गांव ही आत्मनिर्भर नहीं होगें तो राष्ट्र भी आत्मनिर्भर नहीं होगा । आत्मनिर्भर गांव के लिए उनके 5 सूत्र थे , गांव में आरोग्य हो, गांव विवाद मुक्त हो, गांव में कोई अशिक्षित ना हो, गांव पर्यावरण अनुकूल होने के साथ ही आत्मनिर्भर भी हो ।
इस कल्पना को मूर्त रूप देने के लिए नाना जी ने चित्रकूट के ग्रामांचल को ग्राम विकास के लिए ग्रामोदय का मूल मंत्र दिया। धर्म नगरी चित्रकूट की 50 किलोमीटर की परिधि में आने वाले 500 गांवों में स्वावलंबन की अलख जगाने के लिए ग्रामोदय को विकास मॉडल के रूप में प्रस्तुत कर गावों में स्वावलंबन की दिशा में कार्य प्रारंभ किया। प्रत्येक गांव में स्नातक शिक्षा प्राप्त दंपतियों को समाज शिल्पी दंपत्ति के रूप में गांव में भेजा। जो गांव में रहकर गांव की विभिन्न समस्याओं के समाधान में साधक बने। समाज शिल्पी दंपत्ति का कार्यक्रम वर्ष 2002 से नाना जी द्वारा स्थापित दीनदयाल शोध संस्थान के माध्यम से वर्तमान में भी संचालित है।
आज भारत की लगभग 65 फ़ीसदी आबादी गांवों में बसती है। प्रत्येक 10000 व्यक्तियों में से 2000 व्यक्ति ऐसे हैं जिनके पास खुद की जमीन नहीं है वह गांव में रहकर दूसरों की जमीन पर आश्रित होकर खेती किसानी अथवा व्यवसाय करते हैं। जो लोग खेती नहीं कर पाते वह बाहर प्रवासी कामगार के रूप में गांव से पलायन करके देश के विभिन्न बड़े शहरों राज्यों की राजधानियों में जाकर काम करने लगते हैं। गांव से पलायन पिछले कुछ वर्षों शहर की तरफ तेजी से बढ़ा है यह चिंता का विषय है। देश की बढ़ती आबादी जनसंख्या विस्फोट भी समस्याओं के समाधान में प्रमुख अवरोध है। जिस पर ध्यान देने की आवश्यकता है। बढ़ती आबादी के साथ विकास कैसे हो , गांव का विकास कैसे संभव है इसके लिए हमें अपने अतीत में जाने की आवश्यकता है। अतीत में हमारे गांव समृद्धशाली थे। जीवन यापन समस्त संसाधन गांव स्तर पर ही सरलता से एवं न्यूनतम दर पर उपलब्ध था। गांव में जीवन यापन करते समय लोगों को किसी प्रकार की कमी महसूस नहीं होती थी हमारा जीवन गांव में रहकर भी अभावग्रस्त नहीं था।
वर्तमान में कृषि के वैज्ञानिक तरीके को अपनाने की आवश्यकता है । सामूहिक खेती के रूप में विश्व में कई देश साझा प्रयास कर रहे हैं। कृषि में नवीन तकनीकी का प्रयोग करने में इसराइल एक प्रमुख देश है। वर्तमान परिदृश्य में साझी खेती लाभप्रद है । सामूहिक खेती में तकनीकी का समावेश कर लेने से गांव अधिक आत्मनिर्भर हो जाएंगे। कृषकों का यह सोचना कि केवल खेती करके ही आत्मनिर्भर और आर्थिक रूप से समृद्ध हो जाएंगे सोचना निराधार है।आवश्यकता इस बात की है कि कृषि आधारित गांव में जब तक उद्योगों का विकास नहीं होगा। उत्पादन कर्ता का उपभोक्ता से सीधे संपर्क, कृषि संबंधित समितियां उपलब्ध ना होने की दिशा में किसान अपने उत्पाद की बिक्री सरलता से नहीं कर सकेगा। हमारे यहां कृषि में दो प्रकार का विपणन होता है। प्रथम कृषि से उत्पादित वस्तुएं जो ज्यादा दिन नहीं टिकती जैसे फल, सब्जियां आदि। तथा दूसरा उत्पादन से फूड प्रोसेसिंग के माध्यम से वैल्यू एडिशन कर उत्पादक उपभोक्ता तक पहुंचाना। आज समकेतिक खेती करने की आवश्यकता है। खेती के साथ पशुधन के माध्यम से कृषक अपनी आय में वृद्धि कर सकेगा। आज आवश्यकता है कि उत्पाद करने वाला सीधे उपभोक्ता के पास पहुंचे। आज डिजिटलीकरण का युग है आवश्यकता इस बात की है कि उपभोक्ता कैसे सीधे कृषि उत्पाद को न्यूनतम रेट पर और अच्छी गुणवत्ता युक्त फुटपाथ प्राप्त करें विशेष रूप से सब्जी और फलों को लेकर ऑर्गेनिक खेती का महत्व बढ़ता जा रहा है। आज भारत युवाओं का देश है । यदि आत्मनिर्भर भारत बनाना है तो यह गांव से प्रारंभ हो , , गांव के युवाओं से प्रारंभ हो।
आज की शिक्षा प्रणाली में हम 12वीं तक की शिक्षा अनिवार्य रूप से देते हैं परंतु विशेष रूप से गांवों में उसके बाद की शिक्षा कौशल युक्त शिक्षा होनी चाहिए। जो जहां का उत्पाद है वहां पर उत्पाद से जुड़े व्यवसाय कि कौशल शिक्षा गांव में उपलब्ध होनी चाहिए। जिसकी अवधि में छोटे कोर्सों के साथ 1 वर्ष तक का डिप्लोमा सम्मिलित हो। देश की आधी आबादी अर्थात महिलाएं भी गांव में शिक्षित और अशिक्षित हो चुकी हैं उनके साथ मिलकर कौशल शिक्षा अभियान जब तक शुरू नहीं होगा तब तक आत्मनिर्भरता सरलता से संभव नहीं। केंद्र और प्रदेश सरकार ने विभिन्न कौशल योजनाएं चलाई हैं। योजनाओं का लाभ गांव तक सीधे पहुंचे इसकी आवश्यकता है। आजकल ऑर्गेनिक खेती की डिमांड अधिक है। ऑर्गेनिक खेती का प्रशिक्षण प्राप्त कर गांव के युवा कृषि में नई-नई तकनीकें अपनाएं। आज अन्न उत्पादन करने से ज्यादा बीज उत्पादन में पैसा मिलता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का लक्ष्य है कि गांवों में किसानों की आय दुगनी हो। किसान का
उत्पादन दुगना हो या हमारे उत्पाद का मूल्य दुगना मिल जाए। दुगना मूल्य हमें सीधे खेत से प्राप्त नहीं हो सकता ऐसी स्थिति में कृषि उत्पादन में वैल्यू एडिशन की आवश्यकता है । ऐसी योजनाएं बनाए जाएं जिसमें कृषि से जुड़ी समितियों के द्वारा उत्पाद का विपणन कर सकें । जो देश की प्रमुख बड़ी समितियां हैं जैसे मदर डेयरी ,पतंजलि जुड़ने का प्रयास हो। ऐसी समितियों से जब हमारे उत्पादक सीधे जुड़ेंगे तो उन्हें सीधा लाभ मिलेगा। जो आय हमें सीधे खेत से उत्पाद बेचने से प्राप्त होती है उससे कहीं ज्यादा आय हमें उत्पादन के प्रसंस्करण के माध्यम से हो सकती है।
हमारे मध्य प्रदेश में सिंचित क्षेत्रफल अभी कम है। हमारे पास 50 से 60% सिंचित खेती है 27% वन जंगल आदि हैं हमारे जो नए तरीके सिंचाई के हैं उनको कैसे अपनाएंगे इसकी आवश्यकता है। किसान संघ के जितने भी पदाधिकारी हैं उनसे मेरी जब भी चर्चा होती है वह इसके लिए चिंतित रहते हैं कि कैसे हमारे किसान भाइयों को योजनाओं का लाभ प्राप्त हो। मूल बात तो यह है कि हमारे गांव में खुशहाली कैसे आए। खुशहाली तब आएगी जब हम आर्थिक रूप से समृद्ध शाली होंगे। केंद्र सरकार ने विगत कुछ वर्षों में अच्छी योजनाएं चलाई हैं। आज कम्युनिटी लीडरशिप की आवश्यकता है। कि हम आज कैसे साझा खेती करें और साझा विपणन करें । साझा जानकारी के साथ कृषि योजनाओं का लाभ प्राप्त कर सकें।
शुभम राय त्रिपाठी
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