प्रवासी मजदूरों हेतु कृषि में रोजगार के अवसर विषय पर दीनदयाल शोध संस्थान ने आयोजित की राष्ट्रीय वेबिनार


प्रवासी मजदूरों हेतु कृषि में रोजगार के अवसर विषय पर दीनदयाल शोध संस्थान ने आयोजित की राष्ट्रीय वेबिनार 

खेती के साथ अन्य सह-व्यवसाय अपनाकर रोजगार स्थापित करने के लिए हुआ चिंतन 

चित्रकूट, 25 जून 2020। भारत रत्न नानाजी देशमुख हमेशा इसी बात की चिंता प्रगट किया करते थे कि देश की समृद्धि बढ़ाने मेंअलाभकारी जोत वाले किसानों का भी उपयोग कैसे किया जाए, उनको खेती के अलावा अन्य सहायक रोजगार से कैसे जोड़ा जा सके। नानाजी का मानना था कि जिस दिन देश के कम कृषि भूमि वाले किसान समृद्धशाली हो गए उस दिन इस देश से बेकारी, गरीबी भाग जाएगी। शायद इसी सोच को लेकर उन्होंने देश के चार उन कोनों में कृषि विज्ञान केंद्र की स्थापना कराई, जहां के किसान मुख्यधारा से सबसे दूर खड़े थे। इन्हीं सब बातों को लेकर दीनदयाल शोध संस्थान द्वारा एक दिवसीय नेशनल  वेबिनार " प्रवासी मजदूरों हेतु कृषि में रोजगार के अवसर" का आयोजन किया गया। 

जिसमें मुख्य रुप से ICAR के उपनिदेशक डॉ. एके सिंह, साथ में नरेंद्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय अयोध्या के कुलपति डॉ बृजेंद्र सिंह, K.V.K गनीवां के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ चंद्रमणि त्रिपाठी, ATARI कानपुर के निदेशक डॉ अतर सिंह, मौसम विज्ञानिक KVK सोनभद्र डॉ रश्मि सिंह व नरेंद्रदेव कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के वेटरनरी हेड डॉ सुशांत श्रीवास्तव, दीनदयाल शोध संस्थान के संगठन सचिव अभय महाजन, प्रबंध मंडल के सदस्य बसंत पंडित, महाप्रबंधक अमिताभ वशिष्ठ प्रमुख रूप से उपस्थित रहे।
                   
इस वेबिनार का उद्देश्य खेती या इससे संबंधित सह व्यवसाय को अपनाकर कैसे रोजगार स्थापित कर सकते है, इस पर चर्चा हुई। इस वेबिनार का उदघाटन भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के उप  निदेशक डॉ ए.के. सिंह द्वारा किया गया। 

इस अवसर पर डॉ ए के सिंह ने कहा कि बुंदेलखंड प्राकृतिक संपदाओं से भरा पड़ा है, जरूरत है तो उसका सही सदुपयोग करने की। भारत सरकार प्रवासियों हेतु अनेक योजनाएं लेकर आयी है, जिसका उपयोग कर हम रोजगार के अवसर बढ़ा सकते है। उनके द्वारा बताया गया कि विभिन्न योजनाओं के माध्यम से प्रवासी मजदूरों को रोजगार की प्राप्ति हो सकती है जैसे कि आर्या प्रोजेक्ट जिसके माध्यम से युवा मजदूर वर्ग को प्रशिक्षण के माध्यम से रोजगार मिल सकता है। 
                          
नरेंद्रदेव कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ बृजेंद्र सिंह द्वारा वन डिस्ट्रिक वन प्रोडक्ट की बात की गई, उन्होंने बताया कि अगर उत्पादन के साथ मार्केटिंग का उपयोग करें तो उससे अधिक लाभ प्राप्त होगा। उन्होंने बुंदेलखंड के लिए नागफनी व ड्रैगन फ्रूट के उत्पादन की बात की, व इससे लोगों को रोजगार से जोड़ने की बात कही। उन्होंने साथ ही फलों की सघन खेती के साथ-साथ अंतः फसली उत्पादन करने की बात की। 
                        
अटारी कानपुर के निदेशक डॉ अतर सिंह ने गुणवत्ता युक्त दलहन, तिलहन व खाद्यान्न फसलों के उत्पादन करने के लिए विभिन्न तकनीकों की बात की। उन्होंने कृषि विज्ञान केंद्रों के माध्यम से स्किल इंडिया स्कीम के तहत प्रवासी मजदूरों को प्रशिक्षण देकर रोजगार  देने की बात कही। 

डॉ के के सिंह, प्रोफेसर बीएचयू ने बताया कि अगर किसान फूलों की जगह माला बनाकर बेचे तो अधिक लाभ होगा, उन्होंने बताया कि किसानों को ऐसे फूलों का चयन करना चाहिए जो गर्मी के मौसम में भी अच्छे दामों में बेचा जा सके। उन्होंने रूफ गार्डन इन एवं विंडो गार्डन की बात व महत्व भी बताया। 

डॉ सुशांत श्रीवास्तव ने बताया कि बुंदेलखंड के लिए बकरी पालन, मुर्गी पालन आदि किसानों के लिए उचित एवं उपयुक्त है।

K.V.K सोनभद्र की ग्रह वैज्ञानिक डॉ रश्मि सिंह ने बताया कि मजदूरों को माइंड सेट चेंज करना होगा। उन्होंने बताया की वस्तुओं के प्रसंस्करण व लेवलिंग के माध्यम से दामों में वृद्धि की जा सकती है। 

दीनदयाल शोध संस्थान के प्रबंध मंडल के सदस्य बसंत पंडित ने दीनदयाल शोध संस्थान के प्रयासों पर विस्तृत चर्चा की। उन्होंने कहा कि एक समय था जब देशज ज्ञान हमारे लिए पर्याप्त था। लेकिन आज देशज ज्ञान के साथ देशज भाव को भी लाने की जरूरत है। प्रतिस्पर्धा के चलते हमारे प्राकृतिक संसाधन धीरे-धीरे नष्ट होते जा रहे हैं। हमारी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए स्थानीयकरण हमारी आवश्यकता है।

दीनदयाल शोध संस्थान के संगठन सचिव अभय महाजन ने बताया कि हमारा भारत कृषि प्रधान देश तो है ही लेकिन अब खेती के साथ हमें अन्य धंधे भी शुरू करने चाहिए। जिससे रोजगार की कमी ना हो। आधी से अधिक आबादी कृषि क्षेत्र पर निर्भर है, इतनी बड़ी आबादी का विकास, उनका पोषण, उनके जीवन यापन में परिवर्तन लाना, उस हिसाब से वर्तमान में खेती का रकवा पर्याप्त नहीं है। गांव के हालात ठीक करने के लिए कृषि क्षेत्र पर निर्भरता को कम करना होगा। 
उन्होंने यह भी बताया कि चाइना की वस्तुएं सस्ती एवं आकर्षक हैं परंतु हमें उनकी जगह स्वदेशी को बढ़ावा देना चाहिए जिससे रोजगार की कमी ना हो। 

डॉ चंद्रमणि त्रिपाठी, वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं प्रमुख, कृषि विज्ञान केंद्र, चित्रकूट ने क्षेत्र की स्थिति एवं केन्द्र द्वारा किए जा रहे प्रयासों के बारे में अपने विचार रखे। संस्थान के महाप्रबंधक अमिताभ वशिष्ठ ने सभी का धन्यवाद ज्ञापित करते हुए कहा कि ग्रामीण अंचल स्थानीय तथा प्राकृतिक संसाधनों से भरा हुआ है। प्राकृतिक संसाधनों का विधिवत उपयोग समझाएं जाने के बाद गांव में खेती के साथ अन्य अवसर तैयार किए जा सकते हैं।

Shubham Rai Tripathi
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