पर्यावरण अधिष्ठाता प्रो आई पी त्रिपाठी की नवरचित पुस्तक अपना पर्यावरण प्रकाशित






ग्रामोदय यूनिवर्सिटी के पर्यावरण अधिष्ठाता  प्रो आई पी त्रिपाठी की नवरचित पुस्तक अपना पर्यावरण प्रकाशित

चित्रकूट,25 मई। महात्मा गांधी चित्रकूट ग्रामोदय विश्वविद्यालय के विज्ञान और पर्यावरण संकाय के अधिष्ठाता प्रो आई पी त्रिपाठी द्वारा नवरचित  पर्यावरण विषय की विशिष्ट पुस्तक *अपना पर्यावरण* का प्रकाशन हुआ है। प्रो त्रिपाठी की इस विशेष उपलब्धि पर लोगो ने उन्हें बधाई दी है।पुस्तक की विशेषता और विषय सामग्री पर जानकारी देते हुए प्रो आई पी त्रिपाठी ने बताया कि धरती पर पर्यावरण इसकी उत्पत्ति के साथ से जुड़ा हुआ है लेकिन आज के हमारे चिंतन में मूल रूप से मानव जनित पर्यावरणीय कुप्रभावों की दृष्टि है। मनुष्य का इतिहास धरती पर बहुत प्राचीन नहीं है। पृथ्वी आज से कोई पांच सौ करोड़ वर्ष पहले बनी होगी ऐसे वैज्ञानिक मानते हैं लेकिन इस पर मनुष्य का उसकी प्रथम उत्पत्ति से अब तक का इतिहास कुछ लाख वर्ष पुराना है।पर्यावरण में पहले निश्चय ही मनुष्य नहीं था और उत्पत्ति के बाद भी काफी समय तक मनुष्य का कुप्रभाव नगण्य था। सभ्यता के बढ़ते चरण के साथ मनुष्य के द्वारा प्रकृति पर विजय की अभिलाषा तीव्रता होती चली गई। पर शुरू प्रकृति में अनेक विसंगतियां उत्पन्न हुई । 


वैज्ञानिकों और दार्शनिकों को इस बात पर चिंता होना स्वभाविक है और यह पुस्तक इस चिंता का परिणाम है। पुस्तक  में मानव सभ्यता के पहले के पर्यावरण पर दृष्टिपात किया गया है जो अब तक मिले वैज्ञानिक प्रमाणों पर आधारित है।  मानव सभ्यता के बाद का पर्यावरण बताया गया है।सभ्यता की उत्पत्ति और पूर्ण सभ्यताओं के विनाश की अनेक कड़ियों का विस्तार से वर्णन यहां संभव नहीं है।प्राचीन भारतीय संस्कृति में ईश्वर प्रकृति और पर्यावरण पर किए गए चिंतन का विश्लेषण किया गया है। आधुनिक भौतिक सभ्यता में जी रहे मनुष्य द्वारा प्रकृति के साथ की जा रही छेड़खानी एवं परिवहन के वर्तमान स्वरूप का विशेषण इस पुस्तक में किया गया है। प्रकृति संरक्षण का नियम पालन के लिए  बताया गया है कि संरक्षण कहीं वृक्षारोपण से भी अधिक महत्वपूर्ण है। शेर क्यों नरभक्षी हो रहे हैं ?  गिल्टी करण के पास रख लेना शुभ पौधे और जीवों की दुखद स्मृतियों और कुछ भूले बिसरे पहलुओं को देखने का प्रयास किया गया है। संरक्षण के लिए ग्रामीण संरक्षण के नवीन विचार प्रतिपादित किए गए हैं।
पुस्तक में परमाणु आयुध उनके उपयोग और उसके बाद के विकृत विश्व की परिकल्पना की गई है।  सहस्तित्व के लिए प्रार्थना की गई है ।

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