मंदाकिनी एवं कामदगिरि के संरक्षण को लेकर दीनदयाल शोध संस्थान ने जताई चिंता, हुआ मंथन




मंदाकिनी एवं कामदगिरि के संरक्षण को लेकर दीनदयाल शोध संस्थान ने जताई चिंता, हुआ मंथन

चित्रकूट,22 भी 2020। धर्मनगरी चित्रकूट में लाखों श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र बनी पतित पावनी जीवनदायिनी मां मंदाकिनी नदी को पुनर्जीवन प्रदान करने के लिए इस समय लॉकडाउन में पिछले एक माह से स्थानीय समाजसेवियों, मठ-मंदिरों एवं पत्रकारों की पहल पर छेड़े गए अभियान में चित्रकूट के उत्तर प्रदेश एवं मध्य प्रदेश का प्रशासनिक अमला भी पूरी तन्मयता से इसमें लगा हुआ है।

भारत में तीर्थ यात्रा हर एक हिंदू व्यक्ति की जिंदगी का अहम हिस्सा है। इस चार धाम की तीर्थ यात्रा में चित्रकूट एक अहम पड़ाव है। चित्रकूट की यात्रा में कामदगिरि परिक्रमा और मंदाकिनी दोनों का विशेष महत्व है। जाहिर है चित्रकूट की यात्रा हो और इन दोनों महत्वपूर्ण स्थानों का स्पर्श न हो तो यात्रा अधूरी मानी जाती है। 

इन दोनों ही ऐतिहासिक स्थलों की स्वच्छता व निर्मल मंदाकिनी और उसके संरक्षण को लेकर दीनदयाल शोध संस्थान पिछले कई वर्षों से प्रयासरत है। गत दिवस वन विभाग सतना के अधिकारियों के साथ संपन्न हुई बैठक में दीनदयाल शोध संस्थान के संगठन सचिव अभय महाजन ने मंदाकिनी नदी एवं कामदगिरि पर्वत के संरक्षण के लिए चिंता जाहिर की। 
उनका कहना है कि वर्षा जल संरक्षित करने की दिशा में व्यावहारिक प्रयास करने होंगे, वर्षा का पानी संरक्षित करने से भूगर्भ क्षेत्र का जलस्तर बढ़ेगा तथा इससे मंदाकिनी का जलस्तर भी बढ़ेगा तथा साथ ही मंदाकिनी जी के सभी प्राकृतिक जल स्रोतों को भी जीवित रखना होगा। इसके अलावा चित्रकूट के कामदगिरि पर्वत क्षेत्र एवं जंगलों में कई दुर्लभ और औषधि पौधे जो कुछ दशक पूर्व तक प्रचुर मात्रा में थे उनका अत्यधिक दोहन तथा संरक्षण के अभाव में लुप्त होने की कगार पर पहुंच गए हैं। यदि उनके दोहन की यही गति रही तो चित्रकूट में बहुतायत में मिलने वाले सैकड़ों जड़ी बूटियों के पेड़-पौधे खत्म हो जाएंगे। 

दीनदयाल शोध संस्थान के आरोग्यधाम कार्यालय चित्रकूट में संपन्न हुई इस बैठक में जिला वन अधिकारी सतना राजीव कुमार, एसडीओ वन विभाग मझगवां जी.आर. सिंह, रेंजर चित्रकूट बृजेंद्र सिंह रावत, दीनदयाल शोध संस्थान के उप महाप्रबंधक डॉ अनिल जायसवाल, इंजीनियर राजेश त्रिपाठी आदि प्रमुख रूप से उपस्थित रहें।

बैठक में मंदाकिनी नदी के दोनों तरफ किनारों पर एवं कामदगिरि पर्वत पर पूरे परिक्रमा क्षेत्र में अधिक से अधिक वृक्षारोपण करने के साथ-साथ उनके संरक्षण एवं संवर्धन की बात कही गई।
इसके अलावा जलाऊ लकड़ी के लिए वनों का जिस तरह कटाव हो रहा है। स्थानीय लोग आजीविका के लिए भी पेड़ पौधों को काटकर बाजार में बेचते हैं, कुछ पेड़-पौधों की शाखाओं को काटकर चारे के रूप में भी उपयोग करते हैं। इन सबसे  वनों को संरक्षित करने की बात भी बैठक में सामने आई।
इस संदर्भ में जिला वन अधिकारी राजीव कुमार ने कहा कि मंदाकिनी जी के उद्गम स्थल सती अनसुईया आश्रम से लेकर रामघाट तक नदी के दोनों किनारे जो भी कटाव हो रहा है, उन सभी स्ट्रक्चर को ठीक करके सघन वृक्षारोपण करने की योजना तैयार की गई है। कटाव वाले स्थानों को दुरुस्त करने का कार्य बहुत जल्दी शुरू हो जाएगा। इसके अलावा जो लोग जलाऊ लकड़ी के लिए वनों को काट रहे हैं, उनके पास इसके अलावा आजीबिका के कोई साधन नहीं है, ऐसे लोगों को नर्सरी के माध्यम से रोजगार उपलब्ध कराया जाएगा।

Shubham Rai Tripathi
#thechitrakootpost

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