ऑन लाइन शिक्षण व्यवस्था की चुनौतियां :- प्रो (डॉ) एन एल मिश्रा






ऑन लाइन शिक्षण व्यवस्था की चुनौतियां :- प्रो (डॉ) एन एल मिश्रा
                                                    
 सीखने और सिखाने के अनेक प्रारूपों को हम सभी जानते है और प्रत्यक्ष अनुभव भी करते है।पर आधुनिक प्रौद्यौगिकी के जमाने मे जहाँ छात्रों की बाढ़ ने हमे परेशानियों में डाल रखा है वहीं समय की बचत और बढ़ते खर्च ने हमे ऑनलाइन शिक्षण और प्रशिक्षण के तरफ मुड़ने के लिए अभिप्रेरित भी किया है।ऑनलाइन शिक्षण यदि न होता तो कोरोना के इस काल में हम वेबिनार के आयोजन की कल्पना भी नही कर सकते थे।ऑनलाइन शिक्षण कार्य भी न हो पाता।    अब मूल बात यह है कि अचानक ऑनलाइन शिक्षण की आई बाढ़ ने अपने लिए लॉक डाउन में स्थान ढूंढा है और ऐसे ही समय के लिए ऑनलाइन शिक्षण और प्रशिक्षण अपने महत्व को भी स्थापित कर लेता है। अर्थात किसी आपातकाल में यह व्यवस्था एक विकल्प बन सकता है जो काम को गतिमान रख सके।।                                       हालांकि यह व्यवस्था कितनी प्रभावी और कारगर है इस पर विचार करना आवश्यक है।यह सूचनाओं के आदान प्रदान के लिए तो कारगर है पर उतना ही कारगर संज्ञानात्मक चिंतन के लिए भी है यह कहना ठीक नही होगा। प्रत्यक्ष क्लासरूम में अधिगम अपने वास्तविक गति में होता है जहाँ सीखने और सिखाने वाले आपस मे अंतर्क्रिया करते है वाचिक अधिगम के संकेतों का प्रयोग करते है और एक दूसरे के भावों को समझते है।यह सुविधा ऑनलाइन अधिगम में नही है जहाँ भावो को आदमी पकड़ सके और उसके संज्ञानात्मक पहलुओं को समझ और समझा सके।               ऑनलाइन अधिगम निरंतरता और सातत्यता को बहुत हद तक समझ नही पाता जो किसी क्रियाकलाप को सीखने के लिए जरूरी है।उदाहरण के तौर पर व्यक्ति एक निश्चित कोड के जरिये ऑनलाइन प्रशिक्षण से जब चाहे जुड़ जाय पर क्लासरूम इसकी इजाजत नही देता जहाँ शिक्षक विद्यार्थी के मनोभावों को उसकी मजबूरियों को प्रत्यक्षतः अनुभूत करता है।।                                       इसके अतिरिक्त सर्वाधिक महत्वपूर्ण पहलू यह है कि अधिगम की अधिकांश बातें मकेनिकल नही होतीं पर ऑनलाइन अधिगम हमे मकेनिकल यानी रोबोट बनाने के उपागम पर अवलंबित होता है।मनुष्य रोबोट नही है।उसे श्रेय को भी समझना है तो प्रेय को भी जानना है।विद्या को जानना है तो अविद्या में भी डुबकी लगानी है।यो तो आज का आज का विद्यार्थी और टीचर गुरु के संप्रत्यय से भटक गया है और मकेनिकल हो गया है।इसलिए आज की विद्या जो ऑनलाइन एप्रोच को सपोर्ट करती है अंधे कुंए के समान है जहाँ  -                                          अँधेनैव नियमाना अथान्धा                की संभावना को बलवती करती है।थोड़ा सा ज्ञान अर्जित कर अविद्या से ग्रस्त मानव आज ठीक वैसे ही व्यवहार करता है जैसे एक अंधे व्यक्ति के कंधे पर दूसरा अंधा हाथ रखकर चलता है और अंधे कूप में गिर जाता है।इसलिए सम्पूर्ण व्यतित्व के विकास के लिए आवश्यक है कि प्रत्यक्ष ज्ञानार्जन की व्यवस्था को सुदृढ़ किया जाय और ऑनलाइन सिस्टम को ऑनलाइन के लिए ही रखा जाय।                                     जहाँ तक चुनौतियों का प्रश्न है तो प्रौद्यौगिकी जनित व्यवस्था स्वयमेव रास्ते मे है उसे लंबी यात्रा करनी है और आज का मानव स्वयं यंत्र बनता जा रहा है।उसके लिए कल की तकनीक आज पुरानी हो जा रही है ।कभी वह गॉड पार्टिकल खोज कर भगवान को नियंत्रण में करने का दावा करता है तो कभी कोरोना पर असहाय और निरुपाय सा दिखता है।इसलिए उसे अभी लंबी यात्रा करनी है ।अतः अपनी पुरानी परम्पराओ को तब तक प्रयोग में लाना है जब तक कि नया उसका स्थान न ले ले।                                  
जहाँ तक इसके इस रूप की सार्वभौमिकता का प्रश्न है और सर्व सुलभता का प्रश्न है यह समूचे राष्ट्र के लिए तभी कारगर और सार्थक हो सकता है जब इसकी सुलभता आम आदमी तक हो।नीचे से लेकर ऊपर तक अमीर से लेकर गरीब तक विकसित क्षेत्र से लेकर अविकसित क्षेत्र तक पुरुष और महिला सबके पास ऑनलाइन शिक्षण और प्रशिक्षण के लिए सूचना उपकरण हो।इसकी सुलभता हर जगह निश्चित की जाय।इंटरनेट की अच्छी से अच्छी व्यवस्था हो।वाई फाई हर क्षेत्र में उपलभ्ध हो।न सिर्फ उपकरण अपितु इसे संचालित करने के लिए अच्छे प्रशिक्षण दिए जाय तब इसका आम आदमी लाभ ले सकता है।बिना समुचित तैयारी के ऑनलाइन शिक्षा की सीमा सिकुड़ जाएगी।सभी इसका लाभ नही ले सकेंगे और उद्देश्य निरुद्देश्य हो जाएगा।

प्रो (डॉ) एन एल मिश्रा, मनोवैज्ञानिक ,प्रबंधन संकाय
महात्मा गांधी चित्रकूट ग्रामोदय विश्वविद्यालय, चित्रकूट जिला सतना(मध्यप्रदेश)। 


Shubham Rai Tripathi
#thechitrakootpost





Comments

  1. सार्थक और सामयिक चिन्तन। अन्धेन इव नियमाना....., से सतर्क रहेंगे तो आनलाईन व्यवस्था उपयोगी हो सकेगी।

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