तीस हजारी कोर्ट में पुलिस एवं वकीलों के झड़प पर एक नजर




तीस हजारी कोर्ट में पुलिस एवं वकीलों के झड़प पर एक नजर


योग एवं प्राणायाम का व्यक्ति के दैनिक जीवन में महत्वपूर्ण प्रभाव होता है। कहां जाता है नित्य योग और प्राणायाम करने से शरीर के साथ ही शरीर, मन एवं मस्तिष्क में विकार उत्पन्न नहीं होता । हम सभी इसी संकल्प के साथ इस विद्या को अपनाए हुए हैं।
21 जून अंतरराष्ट्रीय योग दिवस घोषित है। इसी वर्ष अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस में भारत के साथ ही अंतरराष्ट्रीय स्तर पर  कार्यक्रम हुए । संभवतः दिल्ली प्रदेश के पुलिस प्रशासन द्वारा भी योग दिवस पर विभिन्न प्रकार के कार्यक्रम , पुलिसकर्मियों एवं वकीलों के योगासन की फोटो सोशल मीडिया पर उनके द्वारा व्यक्तिगत रूप से अथवा विभाग द्वारा विधिवत प्रचार प्रसार किया गया होगा। और योग दिवस के उपलक्ष पर कार्यक्रम के सफल आयोजन पर सुर्खियां भी बटोरी गई होंगी। परंतु इसी योग एवं प्राणायाम का संयम इन दो वर्ग से संबंधित रखने वाले समुदायों ने अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के 5 माह बाद ही खो दिया।

सामाजिक सुरक्षा एवं न्यायपालिका के दो मजबूत स्तंभ पुलिस और वकीलों के मध्य तीस हजारी कोर्ट में हुए विवाद को लेकर दोनों पक्षों में जबरदस्त आक्रोश है। कोर्ट परिसर में पार्किंग जैसे मामूली विषय को लेकर कभी युद्ध के हालात हो सकते हैं यह इस घटना ने सिद्ध कर दिया। 
दोनों पक्षों को संयम रखने की आवश्यकता है ।मामला संसाधनों के प्रयोग के अधिकार को लेकर है यह टकराव धीरे-धीरे समाज में अपनी जड़ें फैलाता जा रहा है। सरकार द्वारा यदि समय रहते जनसंख्या विस्फोट को जनसंख्या नियंत्रण कानून के तहत नहीं रोका गया तो संसाधनों के प्रयोग अधिकार को लेकर कभी ना कभी कहीं ना कहीं ऐसे अन्य मामले भविष्य में भी प्रकाश में आएंगे।
वकीलों का पुलिस के लिए उग्र प्रदर्शन दिल्ली के अलग-अलग कोर्ट परिसरों में भी देखने को मिला।
तीस हजारी कोर्ट में पुलिस प्रशासन द्वारा बर्बरता किए जाने का दावा करने वाले वकीलों ने भी उग्र विरोध जताने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। यदि विवाद तीस हजारी कोर्ट परिसर में मौजूद पुलिस और वकीलों के मध्य था। ऐसी स्थिति में वकीलों द्वारा इस घटना के विरोध स्वरूप दिल्ली के अन्य कोर्ट में भी वकीलों द्वारा बिना विवाद के वर्दीधारी पुलिस ड्यूटी में तैनात पुलिसकर्मियों से बदसलूकी क्यों हुई इसकी जिम्मेदारी वकील समुदाय क्या अपने ऊपर लेगा । 
आखिर एक मामूली विवाद इतने बड़े ग्रह युद्ध में कैसे बदल गया इसके लिए पुलिस की भूमिका भी संदिग्ध है। उक्त घटना के संदर्भ में पुलिस के कार्य प्रणाली की भी जांच होनी चाहिए। 
समाज में विरोध-प्रदर्शन, धरना रोकने का काम पुलिस प्रशासन की जिम्मेदारी में रहता है। इसके उलट, पुलिसकर्मियों द्वारा नई दिल्ली स्थित पुलिस हेड क्वार्टर में प्रदर्शन करना यह सामाजिक पुलिस व्यवस्था एवं सामाजिक सुरक्षा के दृष्टिकोण के लिए चुनौती । बिना पूर्ण जांच के केवल कनिष्ठ पुलिसकर्मियों को सस्पेंड कर देना और उच्च अधिकारियों का ट्रांसफर कर देना भी एक तरफा न्याय हैं। पुलिस हेड क्वार्टर में प्रदर्शन करने के लिए पुलिसकर्मियों के साथ उनके परिवार जन भी मौजूद थे। उनका स्पष्ट कहना है कि ऐसे बिना किसी जांच के सिर्फ कनिष्ठ पुलिस जवानों को सस्पेंड करना उनकी न्याय सेवा एवं कर्तव्य पर प्रश्नचिन्ह लगाने जैसा है।
अब यह चुनौती स्वयं कनिष्ठ पुलिसकर्मियों द्वारा विभाग के उच्च अधिकारियों के लिए था अथवा  समाज के लिए । यह संकेत किसके लिए है , यह तय करने के साथ ही इसकी गंभीरता को भी समझना आवश्यक है। 
क्या यह जिम्मेवारी बोझ बन गई है । जिसमें सुरक्षा एवं कानून के पोषक माने जाने वाले पुलिस और वकीलों ने यह स्पष्ट संदेश दिया कि मौका एवं शारीरिक स्वतंत्रता मिलते ही अपने नैतिक जिम्मेदारियों को छोड़कर , न्यायपालिका को भी दरकिनार करने से हम नहीं चूकेंगे । 

यह लेखक के स्वतंत्र विचार है।

छात्र : मास कम्युनिकेशन।
शिक्षा : एमबीए ( एग्रीबिजनेस मैनेजमेंट) 


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